प्रदेश में बेसिक शिक्षा की बेहतरी और पारदर्शिता के लिए किए जा रहे सरकार के हालिया प्रयास सराहनीय हैं। बच्चों में शिक्षा की बुनियाद डालने वाले प्राइमरी व अपर प्राइमरी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता अब राज्य और केंद्र की सरकारों की प्राथमिकता में है। हालांकि, शिक्षा की गुणवत्ता के मसले पर और ज्यादा गंभीर होने की आवश्यकता है। बुनियादी शिक्षा का बाल मन पर असर जीवन पर्यत दिखाई पड़ता है। बाल मनोविज्ञानी और शिक्षाविद प्राइमरी शिक्षा को ज्यादा तवज्जो देने पर जोर देते रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान की वजह से इस अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर केंद्र और राज्य प्रभावी पहल के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो रहे हैं। केंद्रपोषित इस योजना में गुणवत्ता के लिए दिए गए निर्देशों की अनदेखी लंबे समय तक नहीं की जा सकेगी। उत्तर-प्रदेश में सरकार ने बुनियादी शिक्षा की मानीटरिंग में ब्लाक और पंचायत स्तर के संसाधन केंद्रों की भूमिका तय की ही, लेकिन थोपने की प्रवृत्ति से बचकर इसे बतौर प्रोत्साहन लागू करने का निर्णय राज्य हित में है। अपने कामकाज में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए ब्लाक संसाधन केंद्रों व संकुल संसाधन केंद्रों में होड़ रहेगी। इस प्रतिस्पर्धात्मक माहौल का फायदा प्रदेश के भावी कर्णधारों को मिलेगा। शिक्षा में बेहतरी के लिए यह जरूरी है कि इस क्षेत्र में मेहनती, योग्य और शिक्षा को सिर्फ पेशा मानने के बजाए मिशन के रूप में लेने वाले शिक्षकों व अफसरों को शाबाशी मिले। इस पर राजनीति का लबादा नहीं चढ़ाया जाए तो बेहतर होगा। अच्छा नागरिक देश की बहुमूल्य संपदा है। लिहाजा, शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप से बचने के बारे में सियासतदां को सोचना ही पड़ेगा। प्रोत्साहन के अभाव में अच्छे शिक्षकों का मनोबल टूट रहा है। वहीं, शिक्षकों को समाज में मिलने वाले सम्मान के प्रति राजनीतिक दल सचेत रहना तो दूर, उन्हें कार्यकर्ता के रूप में देखने का नजरिया पाल रहे हैं। यह नजरिया शिक्षा की गुणवत्ता पर भारी पड़ रहा है। इससे स्कूलों में शैक्षिक माहौल दूषित हुआ है। इन हालातों में यदि ब्लाक व पंचायत स्तर पर संसाधन केंद्रों में समन्वयकों की जिम्मेदारी संभाल रहे शिक्षकों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाता है तो इसका प्रभाव स्कूलों पर नजर आते देर नहीं लगेगी।
आमीन!
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