अक्स फिल्म में अमिताभ बच्चन अपने साथी के साथ रात की पार्टी के बाद बातें कर रहे होते हैं। उनका साथी कहता है कि यार अपने बच्चों को सत्य, ईमानदारी जैसे मूल्य सिखाकर कहीं हम उनके साथ धोखा तो नहीं कर रहे। मैं बहुत से ऐसे रचनाकारों को जानता हूं जिन्हें उनके ज्ञान के आधार पर पीएचडी की डिग्री दी जा सकती है लेकिन चूंकि उन लोगों ने हायर सैकण्डरी से अधिक पढ़ाई नहीं की है इस कारण वे सरकारी बाबू की पोस्ट के लिए भी आवेदन नहीं कर सकते। रामानुजन का उदाहरण तो जग प्रसिद्ध है लेकिन हर गली कूचे में ऐसे रामानुजनों को मैं जानता हूं। मेरे परिवार में ही दोनों तरह के लोग रहे हैं। कुछ एज्युकेशन विजार्ड हैं तो कुछ बिल्कुल फिसड्डी। हमारे मजबूत पारिवारिक ढांचे ने पढ़ाई में कमजोर सदस्यों को अपनी दिशा ढूंढ़ने का वक्त दिया और वे खड़े हो गए लेकिन सभी लोग इतने अधिक सौभाग्यशाली नहीं होते।
चूंकि परिवार में इस तरह का दोहरापन था सो इस बारे में लगातार चर्चाएं हुई। कई कारण ट्रेस किए गए लेकिन आजतक ऐसा कोई फूलप्रुफ तरीका नहीं मिल पाया है कि आने वाली पीढ़ी को सौ प्रतिशत सफलता दिला दी जाए।
फिर भी कुछ बातें तय है
- वर्तमान शिक्षा व्यवस्था सोचने का तरीका नहीं बताती
- यह हमें स्वतंत्र जीवन की ओर नहीं ले जाती
- यह ऊंच-नीच के लिए आधार बनाती है
- सभी के लिए सहज नहीं है
- ऐसा सांचा है जिसमें एक ही तरह के लोग तैयार होते हैं
एक हल्के अंदाज का बयां कुछ इस तरह है कि एक दिन काफी डांट खाने के बाद बच्चे ने अपने अभिभावक से कहा 'पहले आप मुझे नर्सरी में भर्ती करेंगे, बाद में पहली दूसरी तीसरी करते हुए बारहवीं कक्षा तक पढ़ाएंगे, बाद में कॉलेज में डालेंगे। इस तरह जब मैं ग्रेजुएट होकर बेकारी के दिन काटूंगा तो आप ही मुझे गालियां निकालोगे कि बाकी लोगों की तरह हो गया।'
दिशा की खोज जारी है...
सिद्धार्थ जोशी
joshi ji very nice !
ReplyDeletekeep it up