कैसे हो कक्षा में गणित सीखना–सिखाना ?

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बच्चे ठोस वस्तुओं के साथ खेलने में मजा लेते हैं इसलिये कक्षा में पहले इनसे ही शुरूआत करनी चाहिये। चीजें एकत्र करके उनसे खेलने, उन्हें तरह–तरह से परखने का बच्चों को मौका दिया जाना चाहिये। इनकी मदद से छांटने’, रंग पहचानने, जोडि़याँ बनाने, क्रम को समझने जैसे काम करवाये जा सकते हैं। बच्चों के साथ मिलकर मिट्टी के खिलौने, रेत और मिट्टी पर आकृतियाँ बनाई जा सकती हैंठोस वस्तुओं के साथ खेलते या काम करते हुए बच्चों के साथ बातचीत करना या उनके अनुभव सुनना बहुत जरूरी है। अक्सर जब हम कक्षा में ठोस वस्तुओं का प्रयोग करते हैं तो एक ही तरह की ठोस वस्तु का उपयोग करते हैं, जबकि तरह–तरह की ठोस वस्तुओं के साथ काम करने से बच्चों की समझ अधिक पक्की होती है। गणित सीखने–सिखाने का क्रम बच्चे गणित को निम्नांकित क्रम में आसानी से सीखते हैं, जो मूर्त से अमूर्त की ओर पर आधारित है।
  1. ठोस वस्तुओं से अनुभव।
  2. भाषा द्वारा अभिव्यक्ति
  3. चित्रों का उपयोग
  4. संकेतों का प्रयोग
बेहतर हो कि गिनतियाँ–पहाड़े रटने की जगह गिनतियों का एहसास कराने और पहाड़े बनाने पर जोर रहे। जोड़, गुणा, घटाना व भाग की क्रियाएं पहले ठोस वस्तुओं के साथ की जाएं, तब अंकों के साथ। वस्तुओं के साथ इन क्रियाओं का पर्याप्त अनुभव अंकों के साथ क्रियाओं को आसान बनायेगा। जोड़, गुणा, घटाना व भाग की शुरूआत भले ही ठोस वस्तुओं से हो लेकिन सीखना सार्थक तभी है जब बच्चे इन क्रियाओं की अवधारणा तक पहुँचे। वे जानें कि गिनती ‘एक में एक जोड़नें, से बनती है। जोड़ने का मतलब चीजों को मिलाना और गुणा का मतलब एक ही मात्रा में चीजों को बार–बार बढ़ाना है – दोनों ही क्रियाओं में चीजें बढ़ती हैं। या घटाने का मतलब चीजों को कम करना है या भाग का मतलब उन्हें बराबर बाटना है। इन दोनों ही क्रियाओं में चीजें घट जाती हैं। आमतौर पर बिन्दु, रेखा, त्रिभुज आदि की परिभाषाएं रटाने से – सीखना–सिखाना निहायत नीरस और उबाऊ काम बन जाता है। बेहतर है कि इन आकृतियों को अपने आसपास खोजा जाय या उनका निर्माण किया जाय। ‘जगह’ संबंधी अनुभवों से सिलसिलेवार गुजरने के बाद बड़ी कक्षाओं में ‘आयतन’ व ‘क्षेत्रफल’ की समझ बनाना आसान होगा।

मौखिक गणित की प्राथमिक स्तर में उपयोगिता

मौखिक गणित बच्चों के लिये बहुत उपयोगी है। यह बच्चों में सोचने की प्रक्रिया को बढ़ावा देती है। पर यह ध्यान रखना जरूरी है कि मौखिक गणित के सवाल उनके परिवेश से जुड़े हों और बच्चे उनका व्यवहारिक अर्थ निकाल सकें। सवालों में दिये घटनाक्रम का औचित्य भी बच्चे समझ सकें। गणित में भाषा और संदर्भ गणित सीखने में अध्यापक की भाषा महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

गणित सीखने में अभ्यास बहुत जरूरी है। अक्सर हम कक्षाओं में ‘रटने का अभ्यास’ करते हैं। जबकि अभ्यास में सृजनशीलता और नवीनता की संभावनाएं रहती हैं। इसमें किसी क्रिया को समझ और तर्क के साथ करने की गुंजाईश होती है। इसके विपरीत रटना एक मशीनी क्रिया है। इसमे किसी बात को बगैर सोचे–समझे बार–बार दोहराना होता है। इसमें मस्तिष्क कम सक्रिय होता है। शायद हमसे कक्षा में चूक हो रही है। हमारा गणित शिक्षण का तरीका बच्चों को रटने की ओर प्रेरित करता नज़र आता है।

बच्चों
को समझाएं गणित का सौन्दर्य

रूचि लेकर और गतिविधियों की मदद से कक्षा में काम किया जाय तो गणित सीखना सिखाना एक मनोरंजक काम बन जाता है। इससे बच्चों में कई क्षमताएं विकसित होती हैं। बच्चों में क्रमबद्धता की समझ पैदा होती है।तर्क व सोचने की क्षमता बढ़ती है। बच्चे संश्लेषण–विश्लेषण करना, निर्णय लेना व निष्कर्ष निकालना सीखते हैं। गणित के साथ–साथ ही भाषा की समझ बनती है। इससे बच्चे सोचने समझने की समस्याएं हल कर सकते हैं। डिजाइनिंग, वास्तुकला तथा चीजों / जगहों की बाहरी–भीतरी सज्जा में गणित का सौन्दर्य ही है। लगातार गणित की गतिविधियों से बच्चों में इनका सौन्दर्यबोध जगाया जा सकता हैगणित की कठिनाइयाँ बहुत कुछ कक्षा में अपनाये जा रहे सीखने–सिखाने के तरीकों पर भी निर्भर करती है। कई बार कोई अवधारणा किसी कक्षा के लिये मुश्किल होती है पर वही अगली कक्षा में आसान साबित हो जाती है।

गणित में
ऐसे करें बच्चों का मूल्यांकन

यह मान्यता अब आम होती जा रही है कि केवल परीक्षाओं के जरिए मूल्यांकन एकांगी मूल्यांकन हैं। यह बच्चों के पूरे व्यक्तित्व उनकी खूबियों और कमजोरियों को नहीं समेटता। बच्चे रोज बरोज नए प्रभाव ग्रहण करते और नए–नए व्यवहार सीखते हैं। उन्हें व्यक्त करते हैं। ऐसे में लगातार चलने वाली सतत मूल्यांकन पद्धति उपयोगी हो सकती है। इसमें अध्यापक की चौकस आँखें लगातार बच्चों को देखती पढ़ती रहती हैं। उनकी गतिविधियों का जायजा लेती रहती हैं। न सिर्फ़ बच्चों का बल्कि अपने काम और तरीकों की भी जाँच – परख करती रहती हैं । दरअसल बच्चों के मूल्यांकन में अध्यापक का मूल्यांकन भी शामिल है। सच कहा जाय तो किसी भी विषय में बच्चे नहीं बल्कि सीखने–सिखाने की व्यवस्था या प्रणालियाँ असफल होती हैं। बच्चों का असफल होना तो किन्हीं असफल कोशिशों का परिणाम है। मूल्यांकन का कोई आधार बनाना मुश्किल है फिर भी कुछ मानक बनाये जा सकते हैं। जैसे
  1. संक्रिया/पाठ को सीखने – सिखाने की परिस्थिति
  2. सिखाए गए पाठ/संक्रिया का प्रभाव पड़ा ?
  3. प्रभाव ठीक नहीं था तो शिक्षक की अपनी कोशिशों का मूल्यांकन
  4. सीखने–सिखाने में बच्चों की प्रगति
  5. बच्चे द्वारा सीखी हुई अवधारणा का अलग–अलग परिस्थितियों में इस्तेमाल
  6. अपनी व दूसरे की गलतियों पर उनका रुख
  7. दूसरों के द्वारा गलतियाँ बताने पर उनका रूख
परीक्षा की कापियाँ जांचना भी मूल्यांकन का एक पहलू है। इसमें केवल उत्तरों को महत्व देने की जगह बच्चों द्वारा सवाल हल करने में अपनाई गई प्रक्रिया और प्रदर्शित की गई समझ को जांचने पर जोर हो। बच्चे कुछ खास सवालों को हल करने में ज्यादातर गलतियाँ करते हैं। शिक्षक इसे जानते हैं। पढ़ाने के दौरान, और बाद में भी, इसे पता करने की कोशिश की जनि चाहिए कि बच्चे अक्सर गलती कहाँ करते है। बच्चों के लिये गणित सीखने का अनुभव एक सुखद अनुभव भी हो सकता है और वह भयावह अनुभव भी। यह सीखने सिखाने की परिस्थिति और प्रक्रिया पर निर्भर करता है कि बच्चे के लिये गणित प्रिय विषय बन जाये या गणित से डरने लगे।



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4Comments
  1. गणित बच्‍चे क्‍यों सीखते हैं, यदि इस रहस्‍य पर विचार करें तो शिक्षणविधि की कई गुत्थियॉं सरल हो सकती हैं। मुझे लगता है कि गणित के सौंदर्य व आनन्‍द पर बल दिए जाने की जरूरत है।

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  2. Parveen Ji,
    I am very happy to learn about this blog as a teacher blog.

    Kindly accept my appreciation.

    It is great that the teachers are absorbing this technology as one of their tool of communication. In your case, you have an edge by bringing it in hindi.

    It is great.

    sumir
    of sumir-history.blogspot.com

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  3. िशक्षा विभाग तक आपके ब्लॉग को पहुंचाने की व्यवस्था करावें ताकि यह सभी अनमोल लेख सभी िशक्षकों तक पहुंच सके।

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  4. ग्राम प्रधान के दयित्वनिर्धरित मीनू के अनुसार भोजन बनवाना , रोज उबला चावल पकता है , रिपोर्ट बी.आर .सी. जाती है , क्या होता है? प्रधानाध्यापकयह देखे कि प्रत्येककार्यदिवस में विद्यालय में मध्यान्ह भोजन मीनू के अनुसार ही उपलब कराया जा रहा है। क्या गुरू जी को प्रधान जी की गाली सुननी हैं ?

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