मोबाइल वाला बच्चा बनाम स्कूल वाला बच्चा

0
आज की शिक्षा दो ध्रुवों पर खड़ी है—एक ओर मोबाइल की चमचमाती स्क्रीन है, जो ‘हर सवाल का जवाब’ देने का दावा करती है, और दूसरी ओर है स्कूल की पुरानी लेकिन मजबूत इमारत, जहाँ जीवन के असली सबक सिखाए जाते हैं। सोचिए, जब एक बच्चा मोबाइल से सीखता हुआ क्लास में आए और दूसरा रोज़ स्कूल आकर सिखने वाला उससे मिले, तो क्या होगा? 

(यह व्यंग इसी अनोखे टकराव और हास्यास्पद स्थितियों को उजागर करता है, जहाँ तकनीक और तजुर्बा एक-दूसरे से हाथ मिलाने की कोशिश करते हैं। आइए, हँसते-हँसते सोचने पर मजबूर होने के लिए तैयार हो जाइए।)


मोबाइल वाला बच्चा बनाम स्कूल वाला बच्चा 

क्लासरूम का माहौल गर्म था। गुरुजी बोर्ड पर ‘पढ़ाई का महत्त्व’ समझा रहे थे, और बच्चे गुपचुप अपनी-अपनी दुनिया में खोए थे। तभी दरवाजे से एक आवाज आई, “सॉरी, सर! नेटवर्क स्लो था, इसलिए लेट हो गया।” यह था मोबाइल वाला बच्चा—जो पहली बार क्लास में आया था।  

गुरुजी ने मुस्कुराकर कहा, “आइए, आपका स्वागत है। लेकिन यह क्लासरूम है, यहाँ ‘नेटवर्क’ से नहीं, ‘नेटवर्किंग’ से चलता है।” मोबाइल वाले बच्चे ने सिर खुजलाते हुए पूछा, “नेटवर्किंग का मतलब?”  

तभी स्कूल वाला बच्चा, जो हर दिन सुबह से क्लास में हाजिर रहता था, बोला, “नेटवर्किंग का मतलब है, रोज आकर गुरुजी से ज्ञान लेना, दोस्तों के साथ झगड़ना और फिर वही दोस्तों के साथ मिलकर परीक्षा की तैयारी करना।”  

मोबाइल वाला बच्चा थोड़ा हिचकिचाया। “पर सर, मैंने तो यूट्यूब पर सारे टॉपिक देख लिए हैं। मुझे स्कूल आने की क्या जरूरत?”  
गुरुजी ने मुस्कराते हुए कहा, “देखो बेटे, यूट्यूब पर देखने से ज्ञान आता है, लेकिन क्लासरूम में जीने से संस्कार आते हैं। यूट्यूब तुम्हें उत्तर देता है, लेकिन क्लास तुम्हारे सवालों को जन्म देती है।”  

स्कूल वाले बच्चे ने तुरंत चुटकी ली, “और हाँ, यूट्यूब तुम्हें ‘लाइक’ सिखाता है, जबकि स्कूल तुम्हें ‘लाइकिंग’ यानी दोस्ती सिखाता है।”  

मोबाइल वाले बच्चे ने तर्क दिया, “लेकिन गुरुजी, ऑनलाइन क्लास में कोई दंड नहीं होता।”  

गुरुजी ने ठहाका लगाते हुए कहा, “और कोई मस्ती भी नहीं होती। जीवन दंड और मस्ती का मिश्रण है, बेटा। यह स्कूल ही सिखाता है।”  

अब दोनों बच्चे एक टीम में प्रोजेक्ट बना रहे थे। स्कूल वाला बच्चा जल्दी-जल्दी अपनी कॉपी से नोट्स निकालकर मदद कर रहा था, और मोबाइल वाला बच्चा बार-बार गूगल से ‘डिफरेंट आइडियाज’ खोज रहा था।  

गुरुजी ने देखा और बोले, “यह देखो, असली ज्ञान यहीं है। एक जो अनुभव से सीख रहा है और दूसरा जो तकनीक से। दोनों मिलकर असली शिक्षा का उदाहरण बना रहे हैं। लेकिन याद रखना, मोबाइल का चार्जर खत्म हो सकता है, पर क्लासरूम का उत्साह कभी खत्म नहीं होता।”  

मोबाइल वाला बच्चा हंसा, “गुरुजी, आपका यह डायलॉग तो इंस्टाग्राम रील्स के लायक है!”  
स्कूल वाले बच्चे ने फिर चुटकी ली, “पर इसे समझने के लिए स्कूल की ज़रूरत है!”  


ज्ञान का असली आनंद तभी है, जब तकनीक और अनुभव दोनों साथ चलें। मोबाइल ज्ञान का साधन हो सकता है, पर स्कूल अनुभव का आधार है। तभी तो गुरुजी ने अंत में कहा, “मोबाइल ज्ञान के दरवाजे खोलता है, और स्कूल तुम्हें सिखाता है, उन दरवाजों से कैसे गुजरना है।”  


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)