सपने वाला स्कूल
रवि नाम का नौ साल का लड़का था। हर सुबह जब उसका अलार्म बजता, वह बेमन से उठता। स्कूल जाने की तैयारी उसके लिए किसी भारी काम से कम नहीं लगती थी। बस्ता इतना भारी होता कि उसे उठाते ही उसकी कमर झुक जाती। स्कूल के लंबे घंटे, होमवर्क का बोझ, और पढ़ाई की वही घिसी-पिटी दिनचर्या—सब उसे बहुत थकाने वाला लगता था।
एक रात, जब रवि थकान के कारण जल्दी सो गया, तो उसने एक अद्भुत सपना देखा।
रवि ने देखा कि वह एक बिलकुल अलग स्कूल में है। वहाँ कोई घंटी नहीं बज रही थी, कोई सख्त नियम नहीं थे, और सबसे खास बात, वहाँ बच्चों के चेहरे खिले हुए थे। स्कूल का नाम था “सपने वाला स्कूल”।
इस स्कूल में बच्चे जब चाहें तब आ सकते थे और जब चाहें घर जा सकते थे। किसी को जबरदस्ती बैठकर पढ़ाई करने की ज़रूरत नहीं थी। यहाँ पढ़ाई खेल और मस्ती में घुली हुई थी, जैसे दूध में मिश्री।
रवि ने देखा कि स्कूल के मैदान में बच्चे हर तरफ खेल रहे थे। कोई झूले पर झूल रहा था, कोई पतंग उड़ा रहा था। कुछ बच्चे पेड़ की छाँव में बैठकर किताबें पढ़ रहे थे। शिक्षक भी बच्चों के साथ हँसते-खेलते और कहानियाँ सुनाते थे। स्कूल कभी बच्चों के घर पहुँच जाता, तो कभी किसी पार्क या नदी के किनारे। वहाँ कोई बस्ता नहीं था, सिर्फ़ सपनों के पंख थे, जो बच्चों के कंधों पर सजाए गए थे।
सबसे मज़ेदार बात यह थी कि इस स्कूल में कोई नियम या कायदा ऊपर से नहीं थोपे जाते थे। बच्चे खुद तय करते थे कि स्कूल में क्या होगा। परीक्षा का डर, होमवर्क का बोझ—यहाँ कुछ भी नहीं था।
रवि ने देखा कि वहाँ बच्चों को प्रतिभाशाली साबित करने की ज़रूरत नहीं थी। स्कूल के शिक्षक मानते थे कि हर बच्चा एक बीज की तरह है, जिसे बस सही समय पर खिलने का मौका चाहिए। कुछ बच्चे देर से खिलते हैं, और यही बात उन्हें खास बनाती है।
रवि रंगीन सपने की इस दुनिया में खोया हुआ था, तभी अलार्म की तेज आवाज़ से उसकी नींद खुल गई। उसकी माँ दरवाजे पर खड़ी थीं, “रवि! जल्दी उठो, स्कूल की बस आने वाली है।”
रवि ने भारी मन से आँखें खोलीं। उसने चारों ओर देखा—कोई झरना नहीं, कोई पार्क नहीं, सिर्फ़ उसकी चारदीवारी थी। उसने बस्ते की ओर देखा, जो हमेशा की तरह किताबों से भरा हुआ था।
बस में बैठते हुए उसने सपने के उस रंगीन स्कूल को याद किया। खिड़की के बाहर देखते हुए उसे लगा कि असल जिंदगी का स्कूल बच्चों के मनोभावों को समझ ही नहीं पाता। शिक्षक, किताबें, और परीक्षा सब बच्चों को अपनी मर्ज़ी से ढालने की कोशिश में लगे रहते हैं।
रवि ने मन ही मन कहा, “काश, स्कूल ऐसी जगह होती, जहाँ हर बच्चा अपने सपने पूरे कर सके। जहाँ पढ़ाई के साथ-साथ जिंदगी को जीने का मजा भी मिले। शायद मेरा सपना कभी सच हो जाए।”
बस ने स्कूल के गेट पर रुकते हुए हॉर्न दिया। रवि अपनी सीट से उठा और भारी कदमों से स्कूल की ओर बढ़ गया।
इस कहानी के जरिए रवि का सपना सिर्फ़ उसका सपना नहीं, बल्कि हर बच्चे की दबी हुई ख्वाहिश है। क्या हमारे स्कूल बच्चों के सपनों के पंख लगा सकते हैं? या उन्हें अपनी कठोर दिनचर्या में जकड़े रखेंगे? आखिर शिक्षा ही नहीं, बच्चों के मन का स्कूल भी उनका अधिकार है।
✍️ प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।