शिक्षा की राजनीति : जब कुर्सी और मेज आमने-सामने हुए
एक दिन स्कूल की एक क्लासरूम में कुर्सी और मेज के बीच बहस छिड़ गई। यह बहस साधारण नहीं थी, बल्कि उन बहसों जैसी थी जो अक्सर शिक्षकों और शिक्षा विभाग के अधिकारियों के बीच होती है—जहां नतीजा कम और नियमों का चक्रव्यूह ज्यादा होता है।
कुर्सी ने कहा, "देखो, मैं कितनी महत्वपूर्ण हूं! प्रधानाध्यापक मुझ पर बैठकर अपनी बात रखते हैं। मेरी अहमियत के बिना इस क्लासरूम की व्यवस्था अधूरी है।" मेज ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, "बिल्कुल, लेकिन यह भी याद रखो कि तुम्हारे प्रधानाध्यापक के सारे आदेश मेरी छाती पर रखे जाते हैं। तुम्हारे बिना तो क्लास चल सकती है, लेकिन मेरे बिना कोई बच्चा अपना होमवर्क तक नहीं कर सकता!"
कुर्सी ने तर्क दिया, "तुम सिर्फ एक सहायक हो, जबकि मैं नेतृत्व का प्रतीक हूं। शिक्षक और अधिकारी मुझ पर बैठकर निर्णय लेते हैं। तुमने कभी अपने लिए किसी शिक्षण प्रशिक्षण में चर्चा होते सुनी है?" मेज ने व्यंग्य से जवाब दिया, "सही कहा, पर यह भी मत भूलो कि शिक्षकों का मूल्यांकन, निरीक्षण की रिपोर्ट और सारे पाठयोजना के दस्तावेज मेरी ही छाती पर टिकते हैं। अगर मैं न होऊं, तो तुम्हारे निर्णय हवा में लटके रहेंगे।"
कुर्सी ने कहा, "मैं वह मंच हूं, जहां से हर शिक्षण नीतियां बनाई जाती हैं। अधिकारी मेरे महत्व के लिए करोड़ों खर्च करते हैं। तुम्हारे लिए कब किसी ने ऐसा किया?" मेज ने चुटकी ली, "तुम पर कौन बैठेगा, यह मैं तय करती हूं! अगर मैं न झुकी रहूं, तो तुम्हारी शोभा का अंत हो जाएगा। तुम्हारी स्थिरता मेरे कंधों पर निर्भर है।"
कुर्सी को यह सुनकर झटका लगा। उसने कहा, "याद है, जब स्कूल में नए फर्नीचर की खरीदारी हुई थी? तब सबने मेरी चमक-दमक की तारीफ की, तुम्हें तो बस ‘मजबूत’ कहकर छोड़ दिया गया था।" मेज ने जवाब दिया, "हां, पर यह भी याद रखना कि नई पाठ्यपुस्तकों से लेकर बच्चों की गणितीय गणनाओं तक, सबका भार मैं ही उठाती हूं। शिक्षक मेरे बिना बच्चों को कुछ भी नहीं सिखा सकते।"
बहस गर्म हो गई थी। कुर्सी ने कहा, "मैं परिपक्वता और सम्मान का प्रतीक हूं। शिक्षक मेरी शान देखकर प्रेरित होते हैं।" मेज ने खिलखिलाकर कहा, "शिक्षक तुम्हारी शान देखकर नहीं, बल्कि बच्चों की कक्षाकक्ष की शांति बनाए रखने के लिए तुम्हारे गिरने से बचाते हैं। असली काम तो मैं करती हूं।"
अंततः, कुर्सी और मेज ने महसूस किया कि उनकी लड़ाई का असल कारण उनका अहम था। मेज ने कहा, "देखो, कुर्सी, असली सवाल यह नहीं कि कौन ज्यादा महत्वपूर्ण है। असली सवाल यह है कि जब तक हम शिक्षा के लिए उपयोगी हैं, तब तक हमारी जगह है। जिस दिन कोई नया मॉडल आएगा, हम दोनों एक ही गोदाम में सड़ेंगे।"
कुर्सी ने सहमति जताई, "सही कहा। शिक्षक और शिक्षा व्यवस्था हमसे बहुत ऊपर हैं। हमें उनकी मदद करने के लिए हैं, न कि उनके बीच बहस करने के लिए।"
इस तरह, कुर्सी और मेज ने समझ लिया कि उनकी भूमिका अलग-अलग है, पर उद्देश्य एक ही है—शिक्षा को सुचारू रूप से चलाना। और शायद यह शिक्षा की असल जीत है।
✍️ प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।