क्या साहित्यकार का चरित्र उसकी कृति पर भारी है?

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क्या साहित्यकार का चरित्र उसकी कृति पर भारी है?


साहित्य समाज का दर्पण है और साहित्यकार वह कारीगर जो इस दर्पण को गढ़ता है। परंतु क्या यह आवश्यक है कि दर्पण गढ़ने वाले का आचरण उसकी कृति की गुणवत्ता का मानक बने? 

इधर कई टिप्पणियां फेसबुक पर दिखी, जिनमें साहित्यकार की नैतिकता और उसके लेखन को जोड़ते हुए यह संदेश देती हैं कि लेखक का बड़ा इंसान होना उसकी कृति की प्रामाणिकता के लिए अनिवार्य है। हालांकि, इस दृष्टिकोण पर असहमति जताते हुए यह कहा जा सकता है कि साहित्य को लेखक के व्यक्तित्व से अलग कर देखना न केवल सही है, बल्कि आवश्यक भी।  


लेखक एक मनुष्य है, और मनुष्य होने के नाते उसमें त्रुटियां स्वाभाविक हैं। उसकी रचनाएं उसके विचारों, अनुभवों और कल्पनाओं की उपज होती हैं, न कि उसके व्यक्तिगत जीवन की पूर्ण अनुकृति। यदि हम साहित्य को लेखक के नैतिक मापदंडों पर तौलने लगें, तो न केवल महान रचनाएं, बल्कि उनके पीछे छिपे गहरे सामाजिक और मानवीय सत्य भी विवादों के घेरे में आ जाएंगे।  

लेखक के साहित्य का मूल्य उनकी रचनाओं के विचार और उनकी संवेदना में है, न कि उनके व्यक्तिगत आचरण में। कई लेखकों का साहित्य सामाजिक यथार्थ और समस्याओं का चित्रण करता है। जबकि उनके व्यक्तिगत जीवन में आर्थिक समस्याएं और कई विवादित निर्णय रहे, परंतु उनके साहित्य की गहराई और प्रासंगिकता आज भी सर्वोच्च हैं।  

लेखक का लेखन ही उसका मूल्यांकन है। यदि लेखक के व्यक्तिगत जीवन को प्राथमिकता दी जाए, तो साहित्य का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। रचनात्मकता और मानवता की गहराई को समझने के लिए हमें लेखन को लेखक से अलग देखना होगा। महान साहित्य समाज को बदलने और प्रेरित करने की क्षमता रखता है, भले ही उसका लेखक नैतिक आदर्शों पर खरा न उतरे।  

साहित्य और लेखक का व्यक्तित्व भिन्न हो सकता है। लेखक की नैतिकता पर जोर देकर उसकी कृति को खारिज करना साहित्य के वास्तविक उद्देश्य के साथ अन्याय है। साहित्य के मूल्यांकन का आधार उसका विचार और उसकी संवेदना होनी चाहिए, न कि उसके लेखक का व्यक्तिगत आचरण।  


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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