OPS: पुरानी पेंशन योजना की बहाली कर्मचारियों और शिक्षकों के सम्मान, सुरक्षा और गरिमा की बहाली के समान

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OPS: पुरानी पेंशन योजना की बहाली कर्मचारियों और शिक्षकों के सम्मान, सुरक्षा और गरिमा की बहाली के समान


"पुरानी पेंशन की लाठी मिले, तो बुढ़ापा संभल जाए, 
जीवन की इस डगर पर, उम्मीद का दिया जल जाए।"


"पुरानी पेंशन योजना" (OPS) की मांग एक बार फिर सुर्खियों में है, खासकर उन सरकारी कर्मियों और शिक्षकों के लिए, जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। बुढ़ापे में स्थिर आय का सहारा देना ही पुरानी पेंशन का सबसे बड़ा उद्देश्य था। लेकिन वर्तमान में नई पेंशन योजना (NPS) लागू होने के बाद, यह सुरक्षा कहीं न कहीं कमजोर हो गई है। 

2004 में नई पेंशन योजना (NPS) के लागू होने के बाद से, कर्मचारियों के लिए एक बड़ा बदलाव देखने को मिला, जिसे उनके जीवन के सबसे संवेदनशील दौर—अर्थात बुढ़ापे—में निराशा के रूप में देखा जा रहा है। NPS में निवेश आधारित पेंशन का प्रावधान है, जो बाज़ार की उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है, जबकि OPS सरकारी कर्मचारियों को एक निश्चित राशि की पेंशन की गारंटी देता था, जो उनकी पूरी नौकरी की सेवा का प्रतिफल होती थी।

पुरानी पेंशन योजना का महत्व इसलिए है क्योंकि यह जीवन के अंतिम पड़ाव पर एक स्थायी और सुनिश्चित आय का स्रोत बनता है। यह योजना सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों को उनके सेवाकाल के बाद सम्मानपूर्वक जीवनयापन करने का अवसर देती थी। इस योजना में कर्मचारी को उसके अंतिम वेतन के आधार पर एक सुनिश्चित पेंशन मिलती थी, जिससे वह अपने बुढ़ापे में वित्तीय समस्याओं से मुक्त रहता था। 

वर्तमान में लागू NPS के अंतर्गत पेंशन का कोई स्थायी आधार नहीं है। इसमें कर्मचारी के निवेश पर आधारित रिटर्न प्राप्त होता है, जो पूरी तरह से बाजार पर निर्भर है। बाजार की अस्थिरता के चलते यह योजना न सिर्फ जोखिमपूर्ण है, बल्कि भविष्य की सुरक्षा भी कम है। 

नेताओं को आज भी OPS की सुविधा दी जा रही है, जो उन्हें जीवनभर पेंशन की गारंटी देती है। वहीं, वही सरकार अपने कर्मचारियों और शिक्षकों को NPS में धकेल देती है, जहां बुढ़ापे की लाठी के बजाय उन्हें अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ता है। यह दोहरा मापदंड आखिर क्यों? क्या नेताओं के बुढ़ापे का सहारा सुनिश्चित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है, जबकि शिक्षकों और कर्मचारियों को बाजार की आंधियों में छोड़ दिया जाए? यह सिर्फ वित्तीय योजना का सवाल नहीं, बल्कि सम्मान, सुरक्षा और गरिमा का भी प्रश्न है। 

हाल ही में सरकार ने एक नई योजना, UPS (Unified Pension Scheme), का प्रस्ताव रखा है, जिसे OPS और NPS के बीच एक सेतु के रूप में देखा जा रहा है। परंतु जब हम इसे ध्यान से देखते हैं, तो यह योजना वास्तविकता में एक छलावा प्रतीत होती है। UPS में वही अनिश्चितता बनी रहती है जो NPS में थी, और यह न ही कर्मचारियों को पुरानी पेंशन जैसी सुरक्षा प्रदान करती है और न ही इसे समान अधिकारों के रूप में देखा जा सकता है। सरकार का यह कदम केवल असंतोष को दबाने की कोशिश लगती है, लेकिन इसमें कर्मचारियों की असली जरूरतों को समझने की कमी दिखाई देती है।

जब देश की सेवा करने वाले शिक्षक और कर्मचारी अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों को राष्ट्र निर्माण में समर्पित करते हैं, तो उनके जीवन के अंतिम वर्षों में उन्हें पुरानी पेंशन योजना का लाभ मिलना चाहिए। OPS उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण सहारा था, जो NPS के तहत समाप्त हो गया है। इसका सीधा प्रभाव उनके बुढ़ापे की आर्थिक सुरक्षा पर पड़ता है, क्योंकि NPS उन्हें वह स्थिरता नहीं दे पाती जो OPS देती थी। 

वर्तमान स्थिति में, देश के कई हिस्सों में सरकारी कर्मचारी लगातार OPS की बहाली की मांग कर रहे हैं। कई राज्यों में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, और यह मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 


OPS की बहाली: क्यों जरूरी है?

आर्थिक स्थिरता: OPS एक सुनिश्चित पेंशन योजना थी, जिससे कर्मचारियों को उनके जीवन के अंतिम चरण में आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस होता था। NPS में यह स्थिरता नहीं है, जिससे बुढ़ापे में चिंता और असुरक्षा बढ़ जाती है।

समानता का सिद्धांत: जब नेता और उच्चाधिकारी OPS के अंतर्गत पेंशन पा रहे हैं, तो कर्मचारियों और शिक्षकों को इससे वंचित करना न्यायसंगत नहीं है। एक लोकतांत्रिक देश में समानता और न्याय का सिद्धांत हर नागरिक पर लागू होना चाहिए, चाहे वह नेता हो या शिक्षक।

बाजार के जोखिम से मुक्त: NPS पूरी तरह से शेयर बाजार के जोखिम पर निर्भर करता है, जिससे कर्मचारियों की पेंशन राशि अनिश्चित हो जाती है। जबकि OPS एक निश्चित पेंशन राशि प्रदान करती थी, जो जीवनभर की सेवा का प्रतिफल होती थी।


नेताओं द्वारा अपने लिए पुरानी पेंशन को जारी रखना और शिक्षकों व सरकारी कर्मचारियों के लिए NPS लागू करना एक नीतिगत विरोधाभास है। यदि नेताओं को OPS के लाभ का हक है, तो वही हक उन कर्मियों और शिक्षकों का भी है, जो वर्षों तक निष्ठा और मेहनत से काम करते रहे हैं। 

यह सच है कि पुरानी पेंशन योजना को लागू करने में सरकार के लिए वित्तीय चुनौती हो सकती है, लेकिन यह चुनौती उनके योगदान और त्याग के सामने कम है। एक राष्ट्र का विकास तभी संभव है जब उसके शिक्षक और कर्मचारी जीवन के हर पड़ाव पर सुरक्षित और सम्मानित महसूस करें।

पुरानी पेंशन योजना की बहाली कर्मचारियों और शिक्षकों के सम्मान, सुरक्षा और गरिमा की बहाली के समान है। NPS के अस्थिरता भरे भविष्य के मुकाबले OPS एक निश्चित, स्थिर और न्यायपूर्ण व्यवस्था थी। सरकार को यह समझना चाहिए कि बुढ़ापे में हर व्यक्ति को एक निश्चित सहारा चाहिए—वह सहारा जो OPS दे सकता है। UPS जैसी योजनाओं से छलावा करके सरकार इस मुद्दे को हल नहीं कर सकती। अब समय आ गया है कि सरकार इस दोहरेपन को खत्म करे और OPS को फिर से लागू करे, ताकि सरकारी कर्मचारी और शिक्षक भी अपने बुढ़ापे को सम्मानजनक तरीके से जी सकें।

"हमने पेंशन की लौ से आस जलाई है,
OPS नहीं तो ज़िन्दगी अधूरी दिखाई है।"


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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