स्कूल का घंटा करता मौन चीख की क्रीड़ा

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स्कूल का घंटा करता मौन चीख की क्रीड़ा
 
  
मैं स्कूल का घंटा, अनुशासन का प्रहरी,  
हर ध्वनि में छिपी है मेरी नियति गहरी।  
बजता हूं हर रोज़, तुमको जगाने,  
पर मेरी भी पीड़ा, कौन जाने?  

छोटे हाथों से छुआ जाता, झंकार फैलती,  
पर अंदर ही अंदर मेरी आत्मा झुलसती।  
कभी ठहरो, सुनो मेरी पुकार,  
क्यों मुझे यूँ हर रोज़ बार बार मार?  

समय का दास बन, मैं घिसता गया,  
नियमों की बेड़ी में खुद को बांधता गया।  
लेकिन क्या तुम भी मशीन हो गए,  
मेरी हर चोट से क्या तुम भी सख्त हो गए?  

मैं चाहता हूँ स्वतंत्रता, पल भर की शांति,  
बस एक बार न बजूं, ये मेरी अंतिम भ्रांति।  
मैं हूं जीवित, मेरी भी है पीड़ा,  
बस समझो तुम, मेरी मौन चीख की क्रीड़ा।  

तो जब तुम अगली बार मुझे छुओगे,  
सिर्फ एक यंत्र नहीं, मुझमें भी जीवन पाओगे।  


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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