संवाद के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान के बजाय विचारों की छूआछूत का अड्डा बनता आज का सोशल मीडिया
"जो सोच से अलग हैं, वो दुश्मन नहीं होते,
बातों को समझ लो, दिल पत्थर नहीं होते।"
आज का सोशल मीडिया, जहाँ संवाद के माध्यम से विचारों का आदान-प्रदान होना चाहिए, विचारधारा की छूआछूत का नया अड्डा बनता जा रहा है। लोग अपनी धारणाओं और मान्यताओं को इतना संकीर्ण कर लेते हैं कि अन्य विचारधाराओं को सहन करने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे में वही लोग अच्छे माने जाते हैं, जो उनकी सोच का समर्थन करते हैं, और बाकी के साथ एक तरह का मानसिक बहिष्कार किया जाता है।
इस समस्या का एक प्रमुख कारण यह है कि हम अपने विचारों को ही अंतिम सत्य मानने लगते हैं। जब हमारे सामने कोई भिन्न विचार आता है, तो हम उसे चुनौती की तरह देखते हैं, बजाय इसे एक नए दृष्टिकोण के रूप में समझने के। ऐसा इसलिए भी है कि हम अपने विचारों को अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेते हैं, जिससे अलग विचार हमें व्यक्तिगत हमले जैसे प्रतीत होते हैं।
सोशल मीडिया पर यह समस्या और भी गहरी होती जा रही है क्योंकि यहाँ धारणाओं के गुटबंदी का चलन बढ़ रहा है। लोग सिर्फ उन्हीं को सुनना पसंद करते हैं जो उनकी सोच का समर्थन करते हैं, और अन्य विचारों को दरकिनार कर देते हैं। यह मानसिकता समाज में विभाजन को बढ़ावा देती है और हमारे लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करती है।
छूआछूत एक सामाजिक बुराई है जो व्यक्ति के जन्म, जाति, धर्म, लिंग, या अन्य किसी भी आधार पर भेदभाव करती है। यह समस्या सदियों से हमारे समाज में व्याप्त है और इसके दूरगामी परिणामों से कई लोग पीड़ित हैं।
विचारधारा की छूआछूत का अर्थ है, ऐसे लोगों के साथ भेदभाव करना जो आपकी विचारधारा से अलग हैं। यह भेदभाव कई रूपों में हो सकता है। उदाहरण के लिए, आप ऐसे लोगों के साथ बातचीत करने से बच सकते हैं जो आपकी विचारधारा से अलग हैं। आप उनका विरोध कर सकते हैं या उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं।
आज के आधुनिक समय में भी छूआछूत की समस्या कम नहीं हुई है। बल्कि, यह एक नए रूप में सामने आ रही है। आज, लोग विचारों के आधार पर भी एक-दूसरे से भेदभाव करते हैं। इस प्रकार का भेदभाव, विचारधारा की छूआछूत कहलाता है।
आज के सोशल मीडिया के समाज में यह विभेद स्पष्ट दिखलाई पड़ता है। अपने जैसे विचार के साथ जुड़ना, अपने जैसे विचार के समर्थन करने वालों के साथ जुड़ना, अपने जैसे विचारों के समर्थकों और सुपारीबाजों के साथ जुड़ने को आप आजकल आसानी से देख सकते हैं।
विचारधारा की छूआछूत के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण यह है कि हम अक्सर अपने विचारों को सही मानते हैं और दूसरों के विचारों को गलत। हम यह सोचते हैं कि केवल हमारे विचार ही सही हैं और दूसरों के विचार गलत हैं। इस कारण से, हम उन लोगों के साथ भेदभाव करते हैं जो हमारी विचारधारा से अलग हैं
दूसरा कारण यह है कि हम अक्सर अपने विचारों को अपने व्यक्तित्व का हिस्सा मान लेते हैं। हम यह सोचते हैं कि हमारे विचार ही हम हैं। इस कारण से, हम उन लोगों के साथ भेदभाव करते हैं जो हमारी विचारधारा से अलग हैं क्योंकि हम यह मानते हैं कि वे हमारे व्यक्तित्व को चुनौती दे रहे हैं।
विचारधारा की छूआछूत एक गंभीर समस्या है। यह समस्या हमारे समाज में तनाव और विभाजन को बढ़ाती है। यह हमारे लोकतंत्र और सामाजिक समरसता के लिए भी खतरा है। विचारधारा की छूआछूत को दूर करने के लिए हमें अपने विचारों के बारे में जागरूक होना होगा। हमें यह समझना होगा कि हमारे विचार हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं हैं। हमें यह भी समझना होगा कि दूसरों के विचारों को भी समान सम्मान दिया जाना चाहिए।
इसके अलावा, हमें एक-दूसरे के साथ संवाद करने की कोशिश करनी चाहिए। हम अपने विचारों को दूसरे लोगों के सामने रखने से नहीं डरने चाहिए। हम दूसरे लोगों के विचारों को भी सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए।
समाधान केवल संवाद और सहनशीलता में है। विचारों का मतभेद होना स्वाभाविक है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि एक-दूसरे को अस्वीकार कर दिया जाए। हमें दूसरों के विचारों को सुनने, समझने और उनका सम्मान करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
क्या आप हैं, दूसरों के विचारों को सुनने और समझने को तैयार? 🤔
✍️ प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर
परिचय
बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।
शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।
बहुत सुन्दर तरीके से बात कही गयी है। धन्यवाद
ReplyDelete