क्या चुनिंदा स्कूलों को आदर्श घोषित करने या गोद लेने से बदलेंगे सभी स्कूलों के हालात?
भारत में शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए लगातार कई नवाचारी प्रयास किए जाते रहे हैं। इन प्रयासों में से एक है चुनिंदा स्कूलों को आदर्श स्कूल बनाना या कुछ स्कूलों को गोद ले लेना। इस सोच के समर्थकों का तर्क है कि इससे शिक्षा के स्तर में सुधार होगा और सभी छात्रों को समान शिक्षा का अवसर मिलेगा।
हालांकि, ज्यादातर शिक्षक साथियों की तरह मैं खुद इस सोच / विचार से सहमत नहीं हूं। मेरा निजी तौर पर मानना है कि यह एक असफल सोच है और इससे शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं होगा। दरअसल यह सोच ही भेदभावपूर्ण है। यह सोच मानती है कि कुछ स्कूल को अच्छे हैं, साबित कर ज्यादातर स्कूल की खराबियों / कमियों को छिपाया जा सकता हैं।
यह सोच सभी स्कूलों को कभी भी समान स्तर पर नहीं रखती है। इससे उन अधिकांश स्कूलों के बच्चों को नुकसान होगा जिन्हें आदर्श स्कूल या गोद लेने के लिए नहीं चुना जाता है। एक तरह से यह सोच अप्रभावी भी है। चुनिंदा स्कूलों को आदर्श स्कूल बनाने या कुछ स्कूलों को गोद लेने से अन्य स्कूलों के स्तर में कोई सुधार नहीं होगा। इसके लिए सभी स्कूलों को समान सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
दरअसल यह सोच अलोकतांत्रिक भी है। यह सोच यह मानती है कि सरकार / विभाग ही यह तय कर सकती है कि कौन सा स्कूल आदर्श स्कूल होगा या कौन सा स्कूल गोद लिया जाएगा। इससे शेष वंचित रह गए स्कूलों को और वहां की जनता को यह संदेश जाता है कि वह सरकार की प्राथमिकता में नहीं हैं।
अंतः में यही कहूंगा कि चुनिंदा स्कूलों को आदर्श स्कूल बनाना या कुछ स्कूलों को गोद ले लेना एक असफल सोच है। इससे शिक्षा के स्तर में कोई सुधार नहीं होगा। इसलिए यह एक ऐसी सोच है, जिससे न तो सहमत हुआ जा सकता है और न ही प्रभावित। इसके बजाय, सरकारों और जिम्मेदारों को सभी स्कूलों के स्तर को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए।