याद रखें कि बचपन एक दौड़ नहीं है

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याद रखें कि बचपन एक दौड़ नहीं है


बचपन एक अनमोल समय है, जब बच्चे अपनी पूरी क्षमता तक विकसित होने की नींव रखते हैं। यह वह समय है जब वे सीखते हैं कि कैसे चलना, बात करना, सोचना और सामाजिक रूप से व्यवहार करना है। यह वह समय भी है जब वे अपनी पहचान विकसित करते हैं और दुनिया के बारे में सीखते हैं।


हालांकि, दुर्भाग्य से, कई समाजों में, बचपन को एक दौड़ के रूप में देखा जाता है। माता-पिता और शिक्षकों को अक्सर इस बात की चिंता रहती है कि उनके बच्चे अन्य बच्चों के साथ तालमेल में नहीं हैं या वे पर्याप्त तेजी से नहीं सीख रहे हैं। इस दबाव के परिणामस्वरूप, कई बच्चे कम उम्र में ही स्कूल छोड़ देते हैं या शिक्षा में पीछे रह जाते हैं।


यह महत्वपूर्ण है कि हम याद रखें कि बचपन एक दौड़ नहीं है। प्रत्येक बच्चा अपनी गति से सीखता है और विकसित होता है। कुछ बच्चे दूसरों की तुलना में जल्दी पढ़ना और लिखना सीख सकते हैं, जबकि अन्य बच्चों को सामाजिक और भावनात्मक कौशल विकसित करने में अधिक समय लग सकता है। यह सभी ठीक है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम प्रत्येक बच्चे को अपनी गति से सीखने और विकसित होने का अवसर दें।


शिक्षाशास्त्र के क्षेत्र में, ऐसे कई सिद्धांत और दृष्टिकोण हैं जो इस विचार का समर्थन करते हैं कि बचपन एक दौड़ नहीं है। उदाहरण के लिए, प्रकृति बनाम पोषण की बहस में, कई शिक्षाशास्त्रियों का मानना है कि प्रकृति और पोषण दोनों ही बच्चों के विकास में एक भूमिका निभाते हैं। कुछ बच्चे जन्म से ही कुछ कौशल या क्षमताओं में अधिक मजबूत हो सकते हैं, जबकि अन्य बच्चों को कुछ कौशल या क्षमताओं को विकसित करने के लिए अधिक समर्थन की आवश्यकता हो सकती है।


एक अन्य महत्वपूर्ण शिक्षाशास्त्रीय सिद्धांत यह है कि सीखना व्यक्तिगत होता है। प्रत्येक बच्चा अलग होता है और अपनी गति से सीखता है। कुछ बच्चों को हाथों-हाथ सीखने में अधिक सफलता मिलती है, जबकि अन्य बच्चों को सुनने या देखने के माध्यम से सीखना अधिक पसंद होता है। शिक्षकों का यह दायित्व है कि वे प्रत्येक बच्चे की व्यक्तिगत सीखने की शैली को समायोजित करें और उन्हें अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने में मदद करें।


बचपन को एक दौड़ के रूप में न देखने के लिए शिक्षाशास्त्र के क्षेत्र में कई दृष्टिकोण भी विकसित किए गए हैं। उदाहरण के लिए, प्रगतिशील शिक्षा दृष्टिकोण बच्चों की रुचियों और जरूरतों पर केंद्रित है। शिक्षक बच्चों को उनकी अपनी गति से सीखने और विकसित होने का अवसर देते हैं।


एक अन्य दृष्टिकोण जो बचपन को एक दौड़ के रूप में नहीं देखता है, वह है मोंटेसरी शिक्षा। मोंटेसरी शिक्षा में, बच्चों को एक स्व-निर्देशित वातावरण में सीखने की अनुमति दी जाती है। शिक्षक बच्चों को उनके सीखने में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं, लेकिन उन्हें अपनी रुचियों और गति से सीखने देते हैं।


बचपन को एक दौड़ के रूप में न देखना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह बच्चों के लिए एक खुश और स्वस्थ वातावरण बनाता है। जब बच्चों को उनकी गति से सीखने और विकसित होने की अनुमति दी जाती है, तो वे अधिक सफल होने की संभावना रखते हैं। वे अपने बारे में अच्छा महसूस करते हैं और अपनी क्षमताओं में विश्वास करते हैं।


माता-पिता और शिक्षक बच्चों को बचपन को एक दौड़ के रूप में नहीं देखने में मदद कर सकते हैं। यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

⚫ बच्चों को अपने हितों और जरूरतों के अनुसार सीखने और विकसित होने की अनुमति दें।
⚫ बच्चों की तुलना एक-दूसरे से न करें।
⚫ बच्चों को उनकी गलतियों से सीखने दें।
⚫ बच्चों को अपनी सफलताओं का जश्न मनाने में मदद करें।


✍️   प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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