सोशल मीडिया क्या वाकई सोशल है? पैसे लेकर बूस्टिंग के माध्यम से प्रचार की समस्या से अब जरूरी है निजात पाना

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सोशल मीडिया क्या वाकई सोशल है? पैसे लेकर बूस्टिंग के माध्यम से प्रचार की समस्या से अब जरूरी है निजात पाना


सोशल मीडिया ने हमारे जीवन को कई तरह से बदल दिया है। यह हमें जानकारी, मनोरंजन और जुड़ाव प्रदान करता है। हाल के वर्षों में, सोशल मीडिया  प्रचार के लिए एक शक्तिशाली मंच के रूप में भी उभरा है।


सोशल मीडिया के माध्यम से बूस्टिंग के माध्यम से प्रचार करने से कई समस्याएं पैदा होती हैं। सबसे पहले, यह एक अवास्तविक छवि बना सकता है। बूस्टिंग के माध्यम से, एक पोस्ट को बहुत अधिक लोगों तक पहुंचा जा सकता है, भले ही यह वास्तव में उतना प्रभावशाली न हो। इससे लोगों को यह गलतफहमी हो सकती है कि एक पोस्ट या विचार वास्तव में अधिक लोकप्रिय है या प्रभावशाली है, जो वास्तव में है।



दूसरे, बूस्टिंग का उपयोग गलत सूचना और भ्रामक प्रचार को फैलाने के लिए किया जा सकता है। बूस्टिंग के माध्यम से, एक पोस्ट को बहुत अधिक लोगों तक पहुंचा जा सकता है, जो इसे अधिक विश्वसनीय बनाने का भ्रम पैदा कर सकता है। इससे लोगों को गलत जानकारी या भ्रामक विचारों को स्वीकार करने की अधिक संभावना हो सकती है।


तीसरा, बूस्टिंग का उपयोग लोगों को प्रभावित करने के लिए किया जा सकता है। बूस्टिंग के माध्यम से, एक पोस्ट को लक्षित दर्शकों तक पहुंचाया जा सकता है, जो इसे अधिक प्रभावशाली बनाने का भ्रम पैदा कर सकता है। इससे लोगों को अपने विचारों और कार्यों को बदलने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।


सोशल मीडिया पर पैसे लेकर पोस्ट को बूस्ट करने की प्रथा एक गंभीर समस्या है। इससे कारोबारी और राजनीतिक प्रचार की प्रचुर संभावनाएं पैदा होती हैं। इस प्रचार को प्रभावशाली साबित करने के लिए, सोशल मीडिया कंपनियां बॉट का इस्तेमाल कर रही हैं, जिससे पाठकों की संख्या वास्तविक संख्या से कई गुना ज्यादा दिखाई देती है। इससे लोगों को यह भ्रम हो सकता है कि कोई विचार या उत्पाद बहुत लोकप्रिय है, जबकि ऐसा वास्तव में नहीं है।


इन समस्याओं को हल करने के लिए, सोशल मीडिया को बूस्टिंग के उपयोग को सीमित करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया को बूस्टिंग के माध्यम से प्रचार सामग्री को प्रचार के रूप में चिह्नित करने की आवश्यकता हो सकती है। इसके अलावा, सोशल मीडिया को बूस्टिंग के लिए कीमतों को नियंत्रित करने की आवश्यकता हो सकती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि केवल वे लोग ही बूस्टिंग का उपयोग कर सकें जो वास्तव में इसे वहन कर सकते हैं।


मेरा मौलिक चिंतन है कि सोशल मीडिया को एक अधिक जिम्मेदार और पारदर्शी मंच के रूप में विकसित होना चाहिए। बूस्टिंग के माध्यम से प्रचार एक गंभीर समस्या है जो लोकतंत्र और समाज के लिए खतरा पैदा कर सकती है। सोशल मीडिया को इस समस्या को हल करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि यह एक अधिक विश्वसनीय और जानकारीपूर्ण मंच बन सके।


यहां कुछ विशिष्ट उपाय दिए गए हैं जो सोशल मीडिया को बूस्टिंग के उपयोग को सीमित करने में मदद कर सकते हैं:

बूस्टिंग को केवल उन खातों के लिए अनुमति दें जिनके पास एक निश्चित संख्या में फालोवर हैं। इससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल वे लोग ही बूस्टिंग का उपयोग कर सकें जो वास्तव में एक बड़े दर्शकों तक पहुंचने में सक्षम हैं।

बूस्टिंग के लिए कीमतों को नियंत्रित करें। इससे यह सुनिश्चित होगा कि केवल वे लोग ही बूस्टिंग का उपयोग कर सकें जो वास्तव में इसे वहन कर सकते हैं।

बूस्टिंग के माध्यम से प्रचार सामग्री को प्रचार के रूप में चिह्नित करें। इससे लोगों को यह पता चलेगा कि वे क्या देख रहे हैं और इसे अधिक जागरूक रूप से मूल्यांकन कर सकते हैं।

बूस्टिंग के माध्यम से प्रचार सामग्री की निगरानी और सत्यापन करें। इससे गलत सूचना और भ्रामक प्रचार को फैलाने से रोकने में मदद मिलेगी।


ये उपाय सोशल मीडिया को एक अधिक जिम्मेदार और पारदर्शी मंच बनाने में मदद करेंगे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि लोग वास्तविक और विश्वसनीय जानकारी तक पहुंच सकें और उन्हें गलत सूचना या भ्रामक प्रचार से बचाया जा सके।


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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