शिक्षा तो खुद उलझी पड़ी

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शिक्षा तो खुद उलझी पड़ी


शिक्षा की तलाश में
लोगों ने ढूंढा ढूंढा
बच्चों को स्कूलों में भेजा
पर शिक्षा कहां मिली?

पढ़ाई लिखाई हुई
पर ज्ञान कहां मिला?
नौकरी के लिए तैयार हुए
पर जीवन जीने का ढंग कहां मिला?

संस्कृति और विरासत का ज्ञान हुआ
पर देशभक्ति कहां मिली?
बच्चे अच्छे इंसान बने
पर दुनिया को कैसे बदला?

शिक्षा की तलाश में
लोगों ने ढूंढा ढूंढा
पर शिक्षा कहीं नहीं मिली
शिक्षा तो खुद उलझी पड़ी।



इस कविता में शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर तंज कसा गया है। कवि कहता है कि लोग शिक्षा की तलाश में हैं, लेकिन उन्हें वह नहीं मिल पा रही है। शिक्षा के नाम पर सिर्फ पढ़ाई-लिखाई हो रही है, लेकिन ज्ञान नहीं मिल रहा है। नौकरी के लिए तैयारी हो रही है, लेकिन जीवन जीने का ढंग नहीं मिल रहा है।  बच्चे अच्छे इंसान बन रहे हैं, लेकिन दुनिया को कैसे बदला जाए, यह नहीं पता।

कवि का कहना है कि शिक्षा खुद उलझी पड़ी है। यह बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों को उलझा रही है। शिक्षा को ऐसी होनी चाहिए जो बच्चों को ज्ञान, जीवन जीने का ढंग, देशभक्ति और दुनिया को बदलने की प्रेरणा दे।


✍️  लेखक : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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