ये चिट्ठियां भी अब जज्बात नहीं ढोतीं

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ये चिट्ठियां भी अब जज्बात नहीं ढोतीं


जज्बात की जगह कागजात ढो रहीं चिट्ठियां,
ये तो नया दौर है, वो पुरानी बातें गईं।


कभी थीं मोहब्बत की निशानियां,
अब दफ्तरों की औपचारिकताएं।


पहले थीं प्रेम पत्रों की टोकरी,
अब ईमेल और मैसेज की बारिश।


कभी थीं भावनाओं की अभिव्यक्ति,
अब सूचनाओं का आदान-प्रदान।


कितना बदल गया है जमाना,
ये चिट्ठियां भी अब जज्बात नहीं ढोतीं।


(राष्ट्रीय डाक दिवस पर)


✍️  कविताकार : प्रवीण त्रिवेदी
शिक्षा, शिक्षण और शिक्षकों से जुड़े मुद्दों के लिए समर्पित
फतेहपुर


परिचय

बेसिक शिक्षक के रूप में कार्यरत आकांक्षी जनपद फ़तेहपुर से आने वाले "प्रवीण त्रिवेदी" शिक्षा से जुड़े लगभग हर मामलों पर और हर फोरम पर अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। शिक्षा के नीतिगत पहलू से लेकर विद्यालय के अंदर बच्चों के अधिकार व उनकी आवाजें और शिक्षकों की शिक्षण से लेकर उनकी सेवाओं की समस्याओं और समाधान पर वह लगातार सक्रिय रहते हैं।

शिक्षा विशेष रूप से "प्राथमिक शिक्षा" को लेकर उनके आलेख कई पत्र पत्रिकाओं , साइट्स और समाचार पत्रों में लगातार प्रकाशित होते रहते हैं। "प्राइमरी का मास्टर" ब्लॉग के जरिये भी शिक्षा से जुड़े मुद्दों और सामजिक सरोकारों पर बराबर सार्वजनिक चर्चा व उसके समाधान को लेकर लगातार सक्रियता से मुखर रहते है।

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