- संगमनगरी में सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ रचनाकारों का शंखनाद
- देश को फासीवाद से बचाने के लिए सभी हों एकजुट
प्रथम दिन
जनवादी लेखक संघ, प्रगतिशील लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के आह्वान पर
सीमैट सभागार में शुक्रवार को जुटे देश के नामचीन लेखकों, रचनाकारों,
संस्कृतिकर्मियों ने सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ शंखनाद किया। मुहिम के
तहत उन्होंने इसके खतरों के प्रति आगाह करते हुए इससे जूझने की तरकीब और
तरीके भी सुझाए। सभी ने दो टूक कहा कि देश में सांप्रदायिक ताकतों का
वर्चस्व बढ़ता जा रहा है, इसे रोका न गया तो पूरा देश, गुजरात की राह
समर्पित होगा।
प्रथम सत्र
‘साझा संस्कृति संगम’ के
‘अन्याय जिधर है, उधर शक्ति’ पर केंद्रित उद्घाटन सत्र में प्रख्यात
अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने कहा, लोकतंत्र के लिए जरूरी शर्त है कि
लोगों में भरोसा हो कि वे इसमें हिस्सा लेकर अपने जीवन को बेहतर बना
सकेंगे। ऐसा न होने पर ही उनमें निराशा का भाव उपजता है और वे फासीवादी
ताकतों के बहकावे में आ जाते हैं। पूंजीवाद मे सभी अपने लिए, अपनी पूंजी के लिए, अपने स्वार्थ के लिए ही लड़ते हैं।
प्रो0 पटनायक ने एक ऐसे एजेंडे को विकसित करने पर ज़ोर दिया जिसमे सभी को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था की जा सके। इससे व्यवस्था के प्रति आम आदमी की निराशा को दूर कर उनका विश्वास अर्जित किया जा सकेगा। (प्रो0 प्रभात पटनायक का पूरा आलेख यहाँ पढ़ा जा सकता है। )
ऐसा कोई समाज तिक ही नहीं सकता है, जिसमे किसी प्रकार का कोई भाईचारा ही ना हो। पूंजीवाद मे हर चीज को कोमोडिटी बना दिया गया है, जाहीर है राजनीति भी अब उसी तर्ज पर हो चली है। इसीलिए पूंजी की व्यवस्था मे ही राजनीति भी अब संलिप्त हो चली है। वर्तमान राजनीति पर कटाक्ष करते हुए प्रो0 पटनायक ने कहा कि यह जानने के बाद भी कि हर व्यक्ति स्वयं अपने जीवन का भागी-विधाता है, यह जानने के बाद भी वह एक मसीहा का इंतजार करता है। इस मसीहाई पॉलिटिक्स से देश और राजनीति को लंबे अर्थों मे कुछ भी नहीं हासिल होने वाला है। नवउदारवाद में विकास के साथ बेरोजगारी भी बढ़ी है। पूंजीवादी व्यवस्था का सिद्धांत प्रत्येक आदमी को अपने स्वार्थ के लिए लड़ने को प्रेरित करता है।
प्रो0 पटनायक ने एक ऐसे एजेंडे को विकसित करने पर ज़ोर दिया जिसमे सभी को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की व्यवस्था की जा सके। इससे व्यवस्था के प्रति आम आदमी की निराशा को दूर कर उनका विश्वास अर्जित किया जा सकेगा। (प्रो0 प्रभात पटनायक का पूरा आलेख यहाँ पढ़ा जा सकता है। )
मशहूर
समाजसेवी तीस्ता सीतलवाड़ ने कहा, सांप्रदायिकता को समझने के लिए जातिवाद
को समझना जरूरी है। साजिश के तहत ही आज समाचारों में एकरूपता है। गुजरात
में विकास का नारा बेबुनियाद है। फासीवाद एक माहौल बनाता है जिसमें न कोई
सवाल कर सके, न ही कोई जवाब मांग सके। पेंग्विन से हिंदुत्व पर प्रकाशित
किताब को वापस लेने की घटना फासीवाद का ताजा उदाहरण है। तीस्ता के अनुसार पूंजी सांप्रदायिकता को बढ़ावा देती है, और इस आपाधापी मे मीडिया भी एकाधिकार का शिकार हो गया है। पाठ्यपुस्तकों मे किए गए बदलावों पर सवाल उठाते हुए तीस्ता का कहना था कि इसके जरिये भी नवउदारवादी फासीवाद को बढ़ावा देने का कारी किया जा रहा है।
अध्यक्ष मंडल में शामिल शेखर जोशी, रमेश कुंतल मेघ, जुबैर रिजवी की ओर से प्रोफेसर अकील रिजवी ने कहा, फासीवाद को रोकना मुश्किल जरूर लेकिन नामुमकिन नहीं। हम लेखकों को अपने कलाम और अलफाज के जरिये पूरी ताकत से संघर्ष करने को तत्पर रहना चाहिए। उन्होने चेताया भी कि बिखरते समाज मे परिवर्तन की लड़ाई बहुत आसान नहीं रहने वाली पर फिर भी हमें संगठित हो संघर्ष के लिए तैयार रहना है और यह समारोह उसी दिशा में एक कोशिश है।
अध्यक्ष मंडल में शामिल शेखर जोशी, रमेश कुंतल मेघ, जुबैर रिजवी की ओर से प्रोफेसर अकील रिजवी ने कहा, फासीवाद को रोकना मुश्किल जरूर लेकिन नामुमकिन नहीं। हम लेखकों को अपने कलाम और अलफाज के जरिये पूरी ताकत से संघर्ष करने को तत्पर रहना चाहिए। उन्होने चेताया भी कि बिखरते समाज मे परिवर्तन की लड़ाई बहुत आसान नहीं रहने वाली पर फिर भी हमें संगठित हो संघर्ष के लिए तैयार रहना है और यह समारोह उसी दिशा में एक कोशिश है।
द्वितीय सत्र
‘बोल कि
लब आजाद हैं तेरे’ पर केंद्रित द्वितीय सत्र में जलेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के
सदस्य मनमोहन ने कहा, हमें निराश होने की जरूरत नहीं लेकिन हमें कड़ी जांच
के साथ ही उनसे आंख मिलाना होगा।संस्कृतिकर्मियों के मध्य परस्पर संवाद बढ़ाने पर ज़ोर देते हुए मनमोहन का कहना था कि पूंजीवादी/ नवउदारवादी राजनीति पर सभी दलों की परस्पर सहमति के बीच वामपंथी राजनीति पर सवाल उठाते हुए जमीनी व वैचारिक संघर्ष को और जोश-ए- खरोश के साथ शुरू करने की बात कही। प्रणयकृष्ण ने कहा कि फासीवाद और सांप्रदायिकता के साथ साथ इसमे सामंतवाद का भी एक छुपा हुआ हिस्सा है। जिसके सटरक रहने व उसके खिलाफ खड़े रहने की व उसको और विकेंद्रीकृत करने की आवश्यकता है।
अली जावेद ने कहा कि आज के सचमुच गंभीर दौर मे लेखक व बुद्धिजीवी ही सबसे बड़े आशा के केंद्र हैं। अपनी लेखनी का इस्तेमाल समाज की बेहतरी के लिए करने का आह्वान किया। शिवमूर्ति ने कहा, सांप्रदायिकता और
जातिवाद, मौजूदा दौर की बड़ी समस्याएं हैं। इनसे लड़ने के लिए सभी को अपने सांस्कृतिक / साहित्यिक साजो सामान के साथ तैयार रहने का आह्वान किया। उनका कहना था कि जातिवाद ‘बोरसी’ की आग की तरह
है, जिसे हवा देने वाले उतने साधन संपन्न नहीं जितने सांप्रदायिकता को हवा
देने वाले।
अध्यक्ष मडंल की ओर से प्रोफेसर राजेंद्र कुमार ने कहा,
अध्यक्ष मडंल की ओर से प्रोफेसर राजेंद्र कुमार ने कहा,
हमें आत्ममुग्ध होने केबजाय संवेदनशील और सरल होकर तैयारी करनी होगी। संघर्ष के रूपों में नए साधनों और तरीकों को शामिल करने की सलाह देते हुए वक्ता का कहना था कि समाज के असंतोष की पक्षधरता के प्रति हमें प्रतिबद्ध होना चाहिए। जनवादी आंदोलनों को बौद्धिकीकरण के बजाय सरलीकरण पर ज़ोर देना चाहिए व अपने आदर्शों पर ढाल कर जनता के समक्ष प्रस्तुत करने को तैयार रहना चाहिए। मीडिया की भूमिका को बिचौलिया की संज्ञा देते हुए सीधे जनता से जुडने की नसीहत दी। संस्कृति कर्मियों को आत्म-मुग्धता से सबसे बड़ी आवश्यकता है।
तृतीय सत्र
‘तय
करो किस ओर हो तुम’ पर केंद्रित तीसरे सत्र के अध्यक्ष मंडल में वरिष्ठ
कथाकर दूधनाथ सिंह, इब्बार रब्बी, आबिद सुहैल, शामिल थे। वीरेंद्र यादव ने प्रेमचन्द्र को घृणा का प्रचारक कहे जाने वाले संदर्भ मे प्रश्न करते हुए कहा कि वर्ण/वर्ग से परे होकर हम लेखक कितना कार्य कर पाये हैं? दलित विमर्श, स्त्री विमर्श व किसानों के विमर्श को लेकर अपने मध्ययुगीन सोच से मुक्त होकर सक्रिय रहने की और बड़ी आवश्यकता है। रचनाकारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर एक नए खतरे की ओर इशारा करते हुए उनके प्रति और संघर्ष के लिए तैयार करने की जरूरत पर बल दिया।
कामरेड सुभाषिनी अली ने कहा कि
कामरेड सुभाषिनी अली ने कहा कि
स्त्री को शामिल किए बगैर कोई लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती है। इसी थीम के साथ आयोजकों को सलाह देते हुए कामरेड वक्ता का कहना था कि राजनीति मे सक्रिय पार्टियां अपनी सुविधा के अनुसार ही सांप्रदायिकता को परिभाषित करते हैं। बहुसंख्यकों की सांप्रदायिकता के अलावा अल्पसंख्यकों की सांप्रदायिकता पर अंगुली उठाते हुए उनका कहना था कि अल्पसंख्यकों की सांप्रदायिकता बहुसंख्यको की सांप्रदायिकता को खाद-पानी देने का काम कर रही है। अतः यदि सांप्रदायिकता के खिलाफ सही माने मे लड़ाई लड़नी है तो हमें दोनों से एक साथ और एक मजबूती से ही लड़ना होगा।
सुभाष गाताडे ने बिलकुल सही समय पर ऐसे आयोजन पर आयोजकों की पीठ थपथपाते हुए कहा कि कोर्ट के सहारे उद्योगपतियों द्वारा तमाम प्रामाणिक बातों पर और पुस्तकों पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच असहमति की आवाज को और मुखर व प्रखर करने की आवश्यकता है।
विमर्श के दौरान कामरेड जियाउल हक, राजेश जोशी, आदि ने भी सांप्रदायिकता और फासीवाद को रेखांकित किया। मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, संजीव और रेखा अवस्थी ने क्रमशः अलग-अलग सत्रों का संचालन जबकि चंचल चौहान, हरीशचंद्र पांडेय, सुधीर सिंह ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सम्मेलन में बड़ी संख्या में लेखक, रचनाकार, संस्कृतिकर्मी शामिल थे।
पास किया गया ‘इलाहाबाद प्रस्ताव’
साझा
संस्कृति संगम में इलाहाबाद प्रस्ताव भी पेश किया और पास किया गया। कहा
गया कि स्वतंत्रता, समानता और जनवाद के लिए संघर्ष और कुर्बानियों की अपनी
महान राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रगतिशील विरासत की शान के मुताबिक इस
कठिन समय में भी यकीनन व्यापक जनतांत्रित शक्तियों के साथ एकजुटता से इस
चुनौती का सामना किया जा सकता है। हमें यकीन है कि अपनी प्रतिबद्धता लगन,
रचनात्मक कल्पना और आविष्कारशील प्रतिभा की मदद से हम अपनी भूमिका का कारगर
ढंग से निर्वाह कर सकेंगे। (आप यह पूरा मसौदा यहाँ पढ़ सकते हैं। )
सांस्कृतिक संध्या
सांस्कृतिक संध्या
के तहत अनिल रंजन भौमिक के निर्देशन में इलाहाबाद के समानांतर नाट्य ग्रुप
की ओर से सत्यजीत रे की कहानी पर आधारित अख्तर अली कृत ‘असमंजस बाबू’ में
राकेश यादव ने प्रभावपूर्ण अभिनय किया। साथ ही हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति
की नाट्य प्रस्तुति भी सराही गई। इसी क्रम में कवि सम्मेलन और मुशायरे के
तहत रचनाकारों ने बखूबी समय और समाज का सच बयां किया।
किताबों की दुनिया
भी
जलेस (जनवादी लेखक संघ), प्रलेस (प्रगतिशील लेखक संघ), जसम (जन संस्कृति मंच) के साझा संस्कृति संगम में साहित्य भंडार,
लोकभारती प्रकाशन, अंजुम प्रकाशन आदि प्रकाशकों की ओर से किताबों की दुनिया
भी सजाई गई जहां लेखकों ने पूरे उत्साह के साथ खरीदारी की लेकिन इस दौरान
साहित्य भंडार की ओर से ‘पचास, पचास, पचास’ का फार्मूला काफी चर्चित रहा।
पाठकों ने योजना को सराहा और किताबें भी खरीदीं। योजना
के तहत साहित्य भंडार के पचास वर्ष पूरे होने पर पचास महत्वपूर्ण लेखकों की
पचास किताबें, पचास-पचास रुपये में उपलब्ध कराई गईं। इन पचास पुस्तकों में
तेइस कहानी संग्रह, सत्रह कविता संग्रह जबकि शेष में निबंध संग्रह,
आलोचना, उपन्यास, नाटक की किताबें शामल थीं।
द्वितीय दिन
- दूधनाथ सिंह बने अध्यक्ष , जुबैर कार्यकारी अध्यक्ष, मुरली जलेस के महासचिव बने रहेंगे
सदस्यीय केंद्रीय परिषद में यूपी के प्रमुख लेखकों को स्थान
जनवादी लेखक संघ के सम्मेलन में आह्वान : धारदार लेखन से करें समय से संवाद
जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय परिषद के विभिन्न पदों
का चुनाव हुआ। इसके अध्यक्ष पद पर वरिष्ठ कहानीकार दूधनाथ सिंह चुने गए।
उन्होंने इस मौके पर लेखन को बरकरार रखते हुए वैचारिक धार बनाए रखने की
जरूरत पर बल दिया। नवनिर्वाचित राष्ट्रीय
अध्यक्ष ने रचनाकारों से धारदार लेखन के
साथ अपने समय से संवाद करने का आह्वान किया। कहा, लेखकों को रचनात्मक लेखन
में मौजूदा समय की समस्याओं को धारदार तरीके से शामिल करना होगा।
दूधनाथ सिंह ने कहा कि युवा लेखन हमेशा नवीन संदर्भों को लेकर आता है, इसलिए पुराने ढंग से सोचने वाले लेखकों के लिए एक आश्चर्यजनक धक्के जैसा है लेकिन नवीनता के वाहक नए लेखक ही होंगे। मैं खुले मन से उन नए लेखकों से नए प्रयोग और रचनात्मक पहल की उम्मीद करता हूं। भविष्य इन्हीं का है और संगठन भी इन्हीं का होगा। कहा कि इस धार से सत्ता, शासक एवं अन्य तत्वों से मोर्चा लेना ही हमारा प्रमुख उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि हमारा संगठन धक्के, शक, संदेह की गुंजाइश को कम करते हुए स्वीकृति को बढ़ावा देगा। लेखन और विचारों पर हमारी प्रतिबद्धता रचनात्मक होनी चाहिए और तमाम कोशिशों के बाद भी लेखन बरक़रार रहना चाहिए और केवल लेखन से भी पूरा नहीं पड़ेगा बल्कि परिवर्तन के लिए लेखन में वैचारिक धार के साथ सत्ता और शासक वर्ग के विरुद्द मोर्चा बनाने का काम सजग और रचनात्मक रूप से आगे बढ़ाना चाहिए | हमारा मूल लेखन ही हमारे रचनात्मक योगदान का साधन है, हम इसी के जरिये समाज को बदल सकते हैं | यह सम्मेलन हमारी लेखकीय प्रतिबद्दता और सामाजिक संघर्षों में एकजुटता को मज़बूत करेगा ऐसा मेरा विश्वास है | हिंदी और उर्दू दोनों हिन्दुस्तानी का एक रूप हैं है, दोनों भाषाओँ का साहित्य और उनके तेवर हमारी प्रतिबद्दता का सबूत है |
मुक्तिबोध को याद करें तो -
कोशिश करो , कोशिश करो
जीने की
जमीन में गडकर भी |
इसके पूर्व चंचल चौहान ने केंद्रीय परिषद के पदाधिकारियों की घोषणा
की जिसको संघ की केंद्रीय परिषद ने सर्व सम्मति से स्वीकार किया। दूधनाथ
सिंह को अध्यक्ष, जुबैर रिजवी को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। नवनिर्वाचित दस उपाध्यक्षों में चंचल चौहान, रमेश कुंतल मेघ, डा. मृणाल,
इब्बार रब्बी, विजयेन्द्र, मुद्रा राक्षस, शेखर जोशी, अफ्फाक हुसैन, नमिता
सिंह एवं चंद्रकला पांडेय शामिल रहे। मुरली मनोहर प्रसाद सिंह महासचिव बने
रहेंगे। संजीव कुमार को नया उपमहासचिव नियुक्त किया गया। शुभा, मनमोहन,
राजेश जोशी, प्रदीप सक्सेना, सुमिता लाहिड़ी, नीरज सिंह, राजेन्द्र शाहीवाल
एवं रेखा अवस्थी को नया सचिव नियुक्त किया गया। सुधीर सिंह को नई
कार्यकारिणी में चयनित किया गया।
141 सदस्यीय केंद्रीय परिषद में चुने गए उत्तर प्रदेश के प्रमुख लेखकों में नमिता सिंह, सुधीर सिंह, अनिल कुमार सिंह, विशाल श्रीवास्तव, केशव तिवारी, नलिन रंजन सिंह, संतोष चतुर्वेदी एवं उमाशंकर आदि प्रमुख हैं।
141 सदस्यीय केंद्रीय परिषद में चुने गए उत्तर प्रदेश के प्रमुख लेखकों में नमिता सिंह, सुधीर सिंह, अनिल कुमार सिंह, विशाल श्रीवास्तव, केशव तिवारी, नलिन रंजन सिंह, संतोष चतुर्वेदी एवं उमाशंकर आदि प्रमुख हैं।
चंचल चौहान ने
केंद्रीय कार्यकारिणी की रिपोर्ट प्रस्तुत की। बाद में उन्होंने कहा,
मौजूदा समय में साम्राज्यवाद का विरोध उस पुरजोर तरीके से नहीं हो पा रहा
है। अंतरराष्ट्रीय पूंजी ने विशाल मध्यवर्ग खड़ा किया है जो क्रांतिकारी
शक्तियों का विरोधी नहीं बल्कि मित्र है। इस दौरान संजीव कुमार ने
पांच प्रस्ताव रखे, जिसे कई संशोधनों के बाद पारित कर दिया गया। इसमें
दलित उत्पीड़न के विरोध सहित उर्दू को दूसरी राजभाषा बनाए जाने, विकास
निधियों का एक अंश शिक्षा, साहित्य एवं कला पर खर्च किए जाने, स्त्रियों के
उत्पीड़न के विरोध जैसे प्रस्ताव शामिल थे।सत्रंत में सुधीर सिंह ने नए पदाधिकारियों का
स्वागत करते हुए डेलीगेट्स का आभार ज्ञापित किया।
पुस्तकों का विमोचन
जलेस
के राष्ट्रीय सम्मेलन में वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी और नमिता सिंह ने
कथाकार नीलकांत की तीन पुस्तकों का विमोचन किया। इसमें ‘मटखन्ना’, ‘राहुल:
शब्द और कर्म (सम्पादित)’, ‘सौंदर्यशास्त्र की पाश्चात्य परंपरा’, शामिल
है। राजेश जोशी ने युवा कवयित्री वसुंधरा के कविता संग्रह ‘शब्द नहीं हैं’,
का लोकार्पण किया।
हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति के
कलाकारों नरेश, राजकुमार, भारत, प्रशांत, सतनाम, दीपक, राजेश, कुसुम, सुमन,
मीनाक्षी ने गीत प्रस्तुत किया। जनवादी लेखक संघ के 8 वें राष्ट्रीय सम्मेलन के
दौरान बेहद भावुक क्षण आया जबकि जलेस के संस्थापकों में से एक कथाकार मार्कण्डेय की पत्नी
विद्यावती सिंह को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया गया।
संयोजक
सुधीर सिंह ने नए सदस्यों का स्वागत करते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त
किया। सम्मेलन में मौजूद तकरीबन दो सौ प्रतिनिधियों में 17 महिलाएं भी
शामिल थीं। इसमें वरिष्ठ कथाकार शेखर जोशी वरिष्ठतम तो बंगाल के राहुल झा
कनिष्ठतम सदस्य रहे।
एक सारगर्भित रिपोर्ट!
ReplyDeleteएक जरुरी आयोजन की सम्यक रपट
ReplyDeleteबधाई और आभार
aache vichar
ReplyDeleteaache vichar
ReplyDeleteseems good that Hindi writers and its admirers are still active.keep it up
ReplyDeletehttp://dexterthetester.blogspot.in/