मूल मुद्दों पर ध्यान देने के साथ पाठ्यक्रम परिवर्तन शायद अधिक प्रभावी होता ...... पर एक अच्छी पहल जिसे अनवरत जारी रहना चाहिए |
बच्चे अब रटंत प्रणाली वाली शिक्षा को दरकिनार कर प्रयोगात्मक शिक्षा आत्मसात करेंगे। विद्यालय स्तर पर शिक्षकों को शिक्षण पद्धति में बदलाव के निर्देश दिये गए है। ऐसा नेशनल करीकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) -2005 दिशा निर्देशों के अनुसार किया जा रहा है। बेसिक शिक्षा के स्तर पर गठित उच्च स्तरीय समितियों के समक्ष विकसित पाठ्यक्रम का प्रस्ताव पहले ही भेजा जा चुका है।
इसके अंतर्गत इस वर्ष से पाठ्यक्रमों इस प्रकार तैयार किया जाएगा कि छात्र अध्याय को रटने के बजाय उसकी रचनात्मकता को आधार बना कर समझें अधिक। प्रयोग के तौर पर कक्षा एक से तीन तक तक पाठ्यक्रमों में चित्रों एवं कैरिकेचर की प्रधानता है, इससे छात्र पुस्तकों के विकल्प को अपने मन मस्तिष्क में मंथन कर बेहतर उत्तर दे सकेंगे । विशेषकर अंग्रेजी में बच्चे जिस प्रकार की रटंत प्रणाली का प्रयोग करते थे, वह हटा दिया गया है। छात्र अब अंग्रेजी वर्णमाला को अंग्रेजी में ही पढ़ेंगे।
बेसिक एवं माध्यमिक स्तर पर इस बार बच्चों में रचनात्मकता पर अधिक ध्यान दिया गया है। पाठ्यक्रमों में ऐसे फेर बदल किये गए हैं जिससे बच्चा रटे कम समझकर ज्यादा जवाब दे। मसलन ज्यादा व्यावहारिक रूपी मिसाल के तौर पर कक्षा आठ की विज्ञान की पुस्तक में समाहित किये गए 'अपने बैंक नोट जानिए' पाठ को ही लें। इस अध्याय में छात्रों को प्रयोगात्मक रूप से नोट को जानने की जानकारी दी गई है।
गत दिनों इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टेडीज में आयोजित डायट(जिला शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थान ) के प्रशिक्षकों की कार्यशाला में इस योजना की जानकारी राज्य के समस्त जिलों के शिक्षकों को दी गई। प्रशिक्षण के दौरान राज्य शिक्षा संस्थान की निदेशक सुप्ता सिंह के अनुसार पाठ्यक्रम में प्राब्लम साल्विंग एटीट्यूड को अधिक शामिल किया गया है। समस्त कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में सूचनाओं एवं ज्ञान में फर्क करके बच्चों को समझाना शिक्षकों की प्राथमिकता में दर्शाया गया है।
कोर्स कैरिकुलम में भावात्मक, कौशलात्मक, ज्ञानात्मक विकास के लिए यथायोग्य परिर्वतन किये गए हैं। इस परिवर्तन का ध्येय बच्चों को परस्पर मानसिक विकास एवं नेतृत्व की क्षमता पैदा है। इसी प्रकार गणित में भी प्रयोगशाला के स्तर से गुणन प्रणाली को समझाने का प्रयास किया जा जाएगा।
पाठ्यक्रम विकास के लिए विवि, इंटर, माध्यमिक, उच्च प्राथमिक, प्राथमिक शिक्षकों एवं एनजीओ के साथ अभिभावकों की भी सहभागिता ली गई है। ऐसा एनसीईआरटी एवं एससीईआरटी पाठ्यक्रमों से बच्चों को लोड कम करने के लिए किया गया है।
समाचार साभार - दैनिक जागरण
यह कितना उचित होगा । समय बतायेगा क्योंकि सभी लोग इसके साथ न्याय कर सकेंगे ।
ReplyDeleteक्या शिक्षा जगत का स्वर्ण युग आने वाला है?
ReplyDeleteअभी पता नहीं कि इस 99% की दौड़ से बच्चों को कितना बाहर किया जा सकेगा. एसा हो सका तो यह बहुत बड़ी उपलब्धी होगी.
ReplyDeleteमंद बुद्धिवाले बच्चों के लिए यह प्रयोग उचित हो सकता है .. पर कुशाग्र बच्चों के कैरियर के लिए यह कतई उपयुक्त नहीं .. सरकार और शिक्षा मंत्री को इस बात को समझना चाहिए !!
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