आदमी ने कुत्ते को काटा टाइप की ख़बरों पर अपनी निजी राय को आम राय न बनाएं!!

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परसों पाँच सितम्बर था ...जाहिर है ब्लॉग जगत में शिक्षक दिवस पर भरमार थी आलेखों की , सम्मान आलेखों की , संस्मरणों की ......और बहुत कुछ भडास भी ! पर ज्यादातर आलेखों को पढने के बाद अधिकांश लेख (लेख कहना शायद मुनासिब ना हो?) शायद भडास ही ठीक रहेगा की भूमिका में लगे !!

हो सकता है की अधिकांश जिंदगी में आपका सामना अच्छे अध्यापकों से ना पडा हो ...पर इतने खराबों के बीच में आप एक अदद अच्छा शिक्षक ना पा सके तो शायद आप से भगवान रूठे रहे होंगे ? ज्यादा समय तो ना मिला लेकिन कुछ ब्लोग्स में फलां शिक्षक ने क्या क्या कुकर्म किए ...इसकी पूरी लिस्ट देख शिक्षक दिवस पर अच्छे आलेखों और संस्मरणों से प्रेरणा लेने का उत्साह काफूर होता नजर आया ...लगा की शायद कहीं ग़लत पेशा तो नहीं अपना लिया


शिक्षा की हर गंभीर या अगंभीर चर्चा में अक्सर अध्यापक की कमियां निकलने वाले अक्सर मिल ही जाते हैं पर यह उसी सच्चाई के कारणवश ही होता कि समाज अध्यापकों से आज भी अन्य लोगों कि तुलना में कंहीं अधिक ऊँचे मापदंडों पर खरे उतरने कि कोशिश लगातार करता रहा है मेरा मानना रहा है कि भारत के अधिकांशतः अध्यापक अनेक कठिनाइयों समस्यायों के क्षेत्र में जूझते हुए कार्य करते रहते हैं अध्यापकों की कमी , अन्य कार्यों में उनकी उर्जा खपाना , अध्यापक प्रशिक्षण संस्थानों कि आई बाढ़ के बावजूद अध्यापक प्रशिक्षण का स्तर लगातार गिर रहा है , जाहिर है इस तरह कि कमियों से उत्पन्न समस्यायों कि जिम्मेदारी शिक्षकों के बजाय शैक्षिक नीति निर्धारकों कि के ऊपर ही आनी चाहिए


ज्यादा विचार किया और यह आलेख पढा (पुराना है ..पर link देने से बेहतर यहाँ पुनः चेंप देना लगा )


चाहे जितना हम अपनी शैक्षिक प्रणाली को कोस ले उसके बावजू हर क्षेत्र में सफल व्यक्ति के पीछे एक शिक्षक की भूमिका देखी जा सकती है । एक स्कूल में तमाम तरह के संसाधनों के बावजूद एक शिक्षक के न होने पर वह स्कूल नहीं चल सकता है । दुनिया में ऐसे हजारों उदाहरण हैं, और रोज ऐसे हजारों उदाहरण गढे जा रहे हैं ,जंहा बिना संसाधनों के शिक्षक आज भी अपने बच्चों को गढ़ने में लगे हैं । वास्तव में आज के प्रदूषित परिवेश में यह कार्य समाज में आई गिरावट के बावजूद हो रहा है ,इसे तो दुनिया का हर निराशावादी व्यक्ति को भी मानना पड़ेगा ।


आज शिक्षक दिवस को 5 सितम्बर के दिन हम सबको यह बातें ध्यान में रखनी चाहिए , इसके साथ हमारे मस्तिष्क में यह प्रश्न भी उठना ही चाहिए कि आख़िर अपने पुरातन संस्कृति में महत्व के बावजूद आज समाज में एक शिक्षक इतनी अवहेलना का निरीह पात्र क्यों बन जाता है? स्कूली शिक्षा का यह स्तम्भ जब तक मजबूत नहीं होगा ,तब तक अपनी शैक्षिक प्रणाली में कोई आमूल - चूल परिवर्तन फलदायी नहीं हो सकता है । हाँ सब को यह समझना होगा कि संस्कृति से अधूरे बच्चे केवल साक्षरों की संख्या ही बढ़ा सकते हैं, पर कोई मौलिक परिवर्तन उनके बूते कि बात नहीं?

डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म दिन आज हम शिक्ष दिवस पर मना रहे हैं । एकलव्य जैसे शिष्य देने वाली गुरुकुल शिक्षा कि संस्कृति वाले इस देश की शिक्षा के बदले मुखौटे में शिक्षक ,शिक्षार्थी शिक्षा के मायने ही बदल दिए गए हैं मार्गदर्शक कहे जाने वाले गुरु और शिष्य के मध्य नैतिक मर्यादाओं में तेजी से हो रही गिरावट पूरे समाज के लिए चिंतनीय है समाज की गिरावट से होड़ लेते हुए शिक्षा से जुड़े हुए उच्च-आदर्श मूल्य जिस तरह से खोये जा रहे हैं, उससे शिक्षक भी पूर्णतयः विचलित होते दिख रहे हैं


व्यावहारिक खामियों के चलते सर्व शिक्षा का प्रयोग सफल नहीं हो पा रहा है । नैतिक शिक्षा पढ़ाई जाने के बावजूद नैतिकता कितनी कायम है , यह समाज के आईने में दिख रहा है। इस शैक्षिक व्यवस्था में अधिकारियों की छाया शिक्षकों पर, शिक्षकों की छाया छात्रों पर पड़ती है । राजनीति और अफसरशाही में खोट से ही अव्यवस्थाओं का आगमन हुआ है ।



जाहिर है इस बात पर सिर्फ़ क्षोभ ही जाहिर किया जा सकता है कि आज हमारा शैक्षिक जगत अमीरी व गरीबी कि दो वर्गीय व्यवस्था में साफ बटा हुआ दिख रहा है। आज ज्ञान के भंडार को खरीदा जा रहा है, और ज्ञान पाने के लिए अकूत धन खर्च करना पड़ रहा है।शैक्षिक हिस्से में पारदर्शिता समाप्तप्राय है ,और इस पवित्र पेशे में माफिया कब्जा जमा चुके हैं । यह कहा जाए कि शिक्षा अब धन व बाहुबलियों कि मुट्ठी में है ,तो ग़लत न होगा ।


व्यवसायीकरण के इस दौर में शिक्षा को शिक्षा को कुछ लोगों के हाथ कि कठपुतली बना दिया गया है आख़िर शिक्षक भी इनकी चपेट कंहीं कंहीं से ही जाते है जाहिर है कि जब पूरे समाज का जो भटकाव हो रहा है , तो शिक्षक भी तो इसी का एक अंग ही तो है



शिक्षक संगठन भी अपने ही फायदों कि आड़ में लेकर आन्दोलन करते है , कभी शैक्षिक गुणवत्ता और उसका उन्नयन उनके आन्दोलन का हिस्सा या मुद्दा नहीं बना है । स्कूलों में बच्चों का कितना बहुआयामी और तथा समग्र विकास हो सकता है ,यह उन्हें पढ़ने वाले शिक्षकों कि लगन, क्षमता व उनकी कार्यकुशलता पर ही निर्भर होता है । सरकार को भी इस तथ्य को मानना ही चाहिए कि अच्छी गुणवत्ता और कौशलों से पूर्ण पठन - पाठन तभी सम्भव है जब हर अध्यापक यह मानकर कार्य करे कि वह नए भारत के भावी कर्णधारों को तैयार कर रहा है ।

आज शिक्षक दिवस के दिन सभी नीति निर्धारकों को भी चिंतन करना चाहिए कि क्या अपेक्षित बदलाव हो पा रहा है । समाज के सामने यह स्पष्ट किया जन चाहिए कि सारी समस्यायों कि जड़ केवल शिक्षा नीतियां और अध्यापक ही नहीं है । विश्लेषण का विषय यह होना चाहिए कि जिनके कारण शैक्षिक नीतियां अपना समय के अनुरूप कलेवर और चोला नहीं बदल पाती है । इस परिवेश में जंहा हर उस व्यक्ति कि तैयारी व शिक्षा को अधूरा मना जाता है , जिसने लगातार सीखते रहने का कौशल न प्राप्त किया हो और उसका उपयोग न कर रहा हो । जो अध्यापक नई तकनीकों से परिचित नहीं हो पा रहे हों , उनका योगदान शैक्षिक आचरण में लगातार कम होता जाता है । आज के परिवेश में वही अध्यापक अपना सच्चा उत्तर-दायित्व निभा सकेगा जो स्वयं अपनी रचनात्मकता व सृजन शीलता के प्रति आश्वस्त हो और अध्ययन शील हो । ऐसी स्थितियां उत्पन्न किए जाने पर उसका स्वागत किया जाना चाहिए जंहा शिक्षक और छात्र साथ-साथ सीखें , चिंतन और निष्कर्ष पर मेहनत करें ।



एक प्राइमरी का मास्टर होने के नाते आज शिक्षक दिवस के दिन मैं यह शपथ लेता हूँ कि अपने कर्तव्य पथ सेकभी भी नहीं टलूंगा । साथ ही अपने उन सभी गुरुजनों को प्रणाम करता हूँ , जिनके कारण मैं आज अपने सोच व विचार की ताकत को पा सका हूँ ।

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15Comments
  1. सही कहा आपने. मैं पूर्णतः सहमत हूँ.

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  2. ऐसी स्थितियां उत्पन्न किए जाने पर उसका स्वागत किया जाना चाहिए जंहा शिक्षक और छात्र साथ-साथ सीखें , चिंतन और निष्कर्ष पर मेहनत करें ।

    सच्ची बात । बेहतर अभिव्यक्ति ।

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  3. हार्दिक शुभकामनाएं !

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  4. एक्दम सही.

    रामराम.

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  5. आप अपनी शपथ को आजीवन निभा सकें,उस के लिए शुभ कामनाएँ।

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  6. शिक्षक का स्थान कुछ लोगों की भड़ास से नहीं बदल सकता

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  7. कुछ घटनाएँ क्षोभ का कारण बनती हैं
    किन्तु इस पतन पर चिन्तन भी आवश्यक है, जो समाज को करना चाहिए

    मुझे तो गुरूजनों पर नाज़ है, उन्हें नमन

    बी एस पाबला

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  8. लेकिन सच्चाई भी है कि आज शिक्षा के क्षेत्र में आने वाले लोग खुशी-खुशी नहीं आ रहे

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  9. @काजल कुमार !

    क्योंकि हम अपनी प्रतिभाओं को इस क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित नहीं कर पा रहे .....सो उनमे कैसा आकर्षण?

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  10. प्रवीण जी,
    शिक्षा को हर बच्चे तक पहुंचाने का महौल तो हमें ही बनाना होगा।मुझे पता नहीं क्यों लगता है कि सरकारी स्तर पर लाख कोशिशों के बावजूद शिक्षकों में वह समर्पण का भाव नहीं आ रहा है ---जो आना चाहिये।मैं भी नगार महापालिका के स्कूल में ही दर्जा आठ तक पढ़ा हूं ---मुझे याद है कि मेरे मौलवी सहब(प्राचार्य महोदय)दिन की पढ़ाई पूरी होने के बाद रात में पूरे क्लास के बच्चों को धिबरी और लालटेन लेकर बुलाते थे और रात में दस दस बजे तक पढ़ाते थे,----यह भी याद है कि बोर्ड के इम्तहान के समय आदरणीय शास्त्री जी आदरणीय मौलवी साहब,हम लोगों को पहुंचाने के लिये परीक्षा केन्द्रों तक जाते थे,केन्द्र पर हर बच्चे की उपस्थिति सुन्श्चित करते थे----क्या आज प्राथमिक स्तर के अध्यापकों में यह समर्पण है?
    हम लोगों को तो ऐसे अध्यापकों को खोज करनी पड़ती है रोल माडल पर फ़िल्म बनाने के लिये---इसलिये यह समर्पण का भाव जब तक शिक्षकों में नहीं पैदा होग हम शिक्षा के संकल्प को नहीं पूरा कर सकेंगे।
    शुभकामनाओं के साथ्।
    हेमन्त कुमार

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  11. @ हेमंत जी !

    आपकी बातों से असमति का प्रश्न नहीं है !! देखिये वह समर्पण और वह स्नेह तो अब संभव नहीं है की हम अध्यापक में ला सकें ...पर वह अपनी नियत ड्यूटी ही निभा सके यही कम ना माना जाना चाहिए !!


    यहाँ प्रश्न यह था अध्यापकों की कमी , अन्य कार्यों में उनकी उर्जा खपाना , अध्यापक प्रशिक्षण संस्थानों कि आई बाढ़ के बावजूद अध्यापक प्रशिक्षण का स्तर लगातार गिर रहा है , जाहिर है इस तरह कि कमियों से उत्पन्न समस्यायों कि जिम्मेदारी शिक्षकों के बजाय शैक्षिक नीति निर्धारकों कि के ऊपर ही आनी चाहिए ।


    पर हम सब जानते हैं की सभी समस्यायों की जड़ हम अध्यापकों को मानकर सस्ता और शायद तथाकथित निदान ढूंढ निकालते हैं !!


    मैं दावे के साथ कह सकता हूँ आज भी प्रतिदिन विद्यालयों में खपने और रमने वाला अध्यापक सरकारी व्यवस्था में स्वयं के लिए प्रोत्साहन अब तक नहीं खोज सका है !

    आप तो बेसिक शिक्षा परिषद् के विषय में भलीभांति जानते ही हैं?

    बेसिक शिक्षा परिषद् की हर कड़ी बेईमानी की मिसाल बन चुकी हैं मंत्री और बड़े अधिकारीयों को छोड़ दें.........आज 95 % ब्लाक संसाधन केन्द्रों व न्याय पंचायत केन्द्रों की महती जिम्मेदारी निभाने वाले कामचोर अध्यापक ही हैं ,,जाहिर है यह ऊपर की व्यस्था ही होगी !!


    आज बेसिक शिक्षा परिषद् की हर व्यवस्था भ्रष्टाचार को ही लक्ष्य करके बनाई जा रही है , प्रशिक्षण मजाक बन कर रह गए है ....... आखिर सबसे अधिक सस्पेंसन करने वाला विभाग कार्यपदत्ति और प्रणाली में सुधार का उपचार क्यों नहीं निकाल चुका है ??



    ज्यादा लम्बा हो रहा है ...आगे फिर कभी?

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  12. आज की स्तिथि में वो सम्पर्पण का भाव नहीं रहा . क्या इसका कारण ज्यादा शिक्षा तो नही . आलकल शिक्षित होने का मतलब गुनी नहीं डिग्री धरी हो गया है . गुणात्मक नहीं परिनात्मक हो गया है.
    सब रोजगार ढूंढ रहे हैं स्तर नहीं

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  13. प्रिय प्रवीण भाई धन्‍यवाद आप मेरी गुल्‍लक में आए। आप मेरे अनुसरणकर्त्‍ता भी बने।

    मुझे पता नहीं है कि आपने इस पोस्‍ट की शुरुआत गुल्‍लक में मेरी पोस्‍ट असंवेदनशीलता शिक्षा की खलनायिका को पढ़कर की है या ऐसा ही कुछ और कहीं और पढ़ा है। एक शिक्षक के रूप में मेरी पोस्‍ट ने आपको झझकोरा है या तकलीफ पहुंचाई है तो मैं समझता हूं कि मैं सफल रहा हूं। आप जैसे शिक्षकों को मेरे कोटि कोटि चरण स्‍पर्श।

    आपकी इस पोस्‍ट के बहाने जिन और साथियों ने अपने विचार व्‍यक्‍त किए हैं उन सबसे मेरा एक ही अनुरोध है कि बीमारी से मुंह मोड़ लेने से बीमारी खत्‍म नहीं हो जाती। हमारी सबकी‍ दिक्‍कत यही है कि हम केवल अच्‍छे के गुणगान में लगे रहते हैं। जो अच्‍छा नहीं है उसे अच्‍छा बनाने की तरफ ध्‍यान ही नहीं देते।

    शिक्षा,शिक्षक और स्‍कूलों को हमने सरकार मात्र का जिम्‍मा मान लिया है। नागरिक के नाते शायद हम अपनी जिम्‍मेदारियां भूल गए हैं। उम्‍मीद है हम इससे आगे जाएं।

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  14. @राजेश उत्साही जी,

    आप B+ रहें!

    दरअसल आज हम अपनी कमियों को तो स्वीकार करने को तैयार हैं ... पर सामाजिक दारिद्र्य का क्या करें ?

    आप नाहक परेशान ना हों ?यह मानसिक अवसाद
    इस लेख के कारण था!
    हालाकि आज गिरिजेश भाई का जवाब देखा ....तो संतोष हुआ!!

    बकिया आप को मेरा सादर नमन !!

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