सिवाय चरित्र-गठन के धार्मिक और नैतिक शिक्षा का कुछ अर्थ नहीं है। इसलिए मैं लड़कों और लड़कियों से कहता हूं कि परमात्मा का कभी भरोसा न छोड़ो और इसलिए अपना भी नहीं।
इसलिए यदि तुम बहादुर लड़के-लड़की हो तो इस प्रकार के सभी विचारों से जूझना तुम्हारा धर्म है। इस दुनिया में बुरे विचारों के उकसाये बिना कोई पापकर्म नहीं किया गया है। अपने दिल में उठने वाले प्रत्येक विचार की जाँच तुम्हें सावधानी से करनी है। कई विद्यार्थियों ने, लड़के और लड़कियों दोनों ने, मुझसे कहा है कि उनकी बुद्धि मेरी बातों को स्वीकारती तो है मगर अपने विचारों पर काबू रखना वे असंभव पाते हैं और इसीलिए वे अन्त में हार मानते हैं, निराश हो जाते हैं और तब कुछ गंदी पुस्तकों से उकसाये जाकर बुरे विचार रखने लगते हैं।
दूसरी क्रिया है - बुरे विचारों को सोचना और उन्हीं में मस्त रहना। यह अत्यन्त खतरनाक और हानिकारक क्रिया है और मैं तुमसे सारी शक्ति लगाकर इसी को मार भगाने को कहता हूं।
नवजीवन, 3-11-१९२९; शिक्षण और संस्कृति, पृष्ठ-58
याद रखो कि यदि तुमने अपने मन में एक भी बुरे विचार को स्थान दिया तो तुममें विश्वास की कमी है। असत्य, अनुदारता, हिंसा, विषय-विकार यह सब बातें आत्मविश्वास न होने पर ही उत्पन्न होती हैं। गीता में यही बात प्रत्येक श्लोक में कही गयी है। यदि मैं ईसा के गिरि शिखर पर के उपदेश का सारांश दूं तो वह भी यही है। कुरान में भी मैंने यही बात पायी है। हमारे अपने आप से अधिक हमारा और कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
इसलिए यदि तुम बहादुर लड़के-लड़की हो तो इस प्रकार के सभी विचारों से जूझना तुम्हारा धर्म है। इस दुनिया में बुरे विचारों के उकसाये बिना कोई पापकर्म नहीं किया गया है। अपने दिल में उठने वाले प्रत्येक विचार की जाँच तुम्हें सावधानी से करनी है। कई विद्यार्थियों ने, लड़के और लड़कियों दोनों ने, मुझसे कहा है कि उनकी बुद्धि मेरी बातों को स्वीकारती तो है मगर अपने विचारों पर काबू रखना वे असंभव पाते हैं और इसीलिए वे अन्त में हार मानते हैं, निराश हो जाते हैं और तब कुछ गंदी पुस्तकों से उकसाये जाकर बुरे विचार रखने लगते हैं।
हम सभी के बीच दो क्रियाएं चलती हैं। उनका भेद मैं अच्छी तरह समझा देना चाहता हूं। सिद्धों और संतों के अतिरिक्त सबके मन में बुरे विचार उठेंगे ही। इसलिए ईश्वर से यह प्रार्थना करनी आवश्यक है कि हे परमात्मा! हमें बुरे विचारों से बचा। यह क्रिया हमारा लाभ ही करती है।
दूसरी क्रिया है - बुरे विचारों को सोचना और उन्हीं में मस्त रहना। यह अत्यन्त खतरनाक और हानिकारक क्रिया है और मैं तुमसे सारी शक्ति लगाकर इसी को मार भगाने को कहता हूं।
नवजीवन, 3-11-१९२९; शिक्षण और संस्कृति, पृष्ठ-58
निरन्तर आ रहे हैं बहुमूल्य विचार बापू के । इनकी प्रासंगिकता और इनके मूल्य सार्वभौमिक हैं । आभार इनकी प्रस्तुति के लिये ।
ReplyDeleteआप बापू का रिविजन करवा रहे हें,जरूरी है। धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत आभार आपका. सही मे रिवीजन चल रहा है जो वाकई जरुरी है.
ReplyDeleteरामराम.
सत्प्रयास !
ReplyDeleteबिलकुल सत्य वचन जी
ReplyDeleteधन्यवाद
v good
Deleteशिक्षक का पहला दायित्व होता है छात्रों का चरित्र निर्माण.....मुझे कोई संशय नहीं की एक शिक्षक रूप में आप अपने इस दायित्व निर्वाह से पीछे हटते होंगे....
ReplyDeleteबड़ा ही संतोष हुआ आपका यह आलेख पढ़...आभार.
बापू के प्रेरणादायक विचारों से अवगत करने के शुक्रिया ....!!
ReplyDeleteमानव की सबसे बडी आवश्यकता शिक्षा नहीं, चरित्र हैं और यहीं उसका सबसे बडा रक्षक है।
ReplyDeleteagar makaan ki niv kamjor hogi to makaan kabhi bhi gir sakata hai.praaimari ka master vah hai jo rashtra ki niv ka nirmaan karte hain.school me hindu,mushalmaan ya isaai nahi padhte vahaan kewal vidhyarathi hote hain.bhasha rashtra bhasha,maatra bhasha tatha ek anya bhasha padhaai jaaye,hindi,urdu ya gurmukhi kahkar netaon waali baaten na karen.
ReplyDeleteagar aap bata saken ki yahan hindi me kaise likhun to aabhari hunga.
shikshak rashtra nirmata- meri rachna ko aapke paas alag se bhejne ka prayaas karunga.aap mere baare me orkut par bhi padh sakate hain.
dr.a.kirtivardhan