यहाँ वास्तविक समस्या यह है कि लोगों को यह पता ही नहीं कि शिक्षा वास्तव में किस चीज़ का नाम है। हम शिक्षा का मूल्य भी वैसे ही आंकते हैं जैसे कि जमीन का भाव लगा रहे हों या शेयर बाजार में शेयरों का मोलभाव कर रहे हों। हम केवल वैसी ही शिक्षा उपलब्ध करवाना चाहते हैं जो छात्रों को अधिक पैसा कमाने में सक्षम बनाए। हम बमुश्किल ही इस बारे में सोचने की ज़हमत उठाते हैं कि शिक्षित व्यक्ति के चरित्र में सुधार लाना भी एक पक्ष है। हम मानते हैं कि लड़कियों को कमाने की कोई आवश्यकता नहीं, इसलिए उन्हें क्यों पढ़ाया जाए। जब तक ये विचार मौजूद रहेंगे, तब तक शिक्षा के वास्तविक मूल्य को जानने की कोई उम्मीद नहीं बनेगी।
शिक्षण व अध्ययन की प्रक्रिया में सुधार के लिए प्रौद्योगिकी
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''प्राचीन काल से ही शिक्षा की प्रक्रिया विकसित होकर विविध रूपों में प्रसारित होती रही है। हरेक देश अपनी मौलिक सामाजिक-सांस्कृतिक अस्मिता को प्रसारित करने और समय की चुनौतियों से निपटने के लिए अपने यहां एक शिक्षा व्यवस्था विकसित करता है।'' राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 का यह वक्तव्य, जिसे 1992 में संशोधित किया गया, भारतीय शिक्षा की दिशा तय करता है। यह नीति इस बात पर जोर देती है कि ''भारत सरकार हर पांच साल पर इस दिशा में हुई प्रगति की समीक्षा करेगी और आगे के विकास के लिए दिशा-निर्देशों का प्रस्ताव रखेगी।'' गुणवत्तापूर्ण शिक्षक प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम की रूप-रेखा के बारे में जानने के लिए पर क्लिक करें। |
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''गांधी ऑन एजुकेशन'', ''रोल, रिस्पांस्बिलिटी ऑफ टीचर्स इन बिल्डिंग अप मॉडर्न इंडिया'', एजुकेशन फॉर टुमॉरो'' जैसी किताबों और प्रसिद्ध लेखकों द्वारा शिक्षा पर लिखी हुई सामग्री के लिए पर क्लिक करें | |