जानिए शिक्षक निर्णय लेने की स्वयं की क्षमता क्यों खो देते हैं?

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जानिए शिक्षक निर्णय लेने की स्वयं की क्षमता क्यों खो देते हैं? 

 

फेसबुक पर शिक्षाविद सुबीर शुक्ल जी की फेसबुक वाल देख रहा था। जहां पर उनके विचार यूं लिखे थे

एक देश के रूप में, हम अपने शिक्षकों के प्रति बहुत ही निम्न स्तर की महत्वाकांक्षाएं रखते हैं। हमने तय कर लिया है कि वे अज्ञानी हैं और उन पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए, उन्हें 'संचालित' किया जाना चाहिए और मॉनिटरिंग के माध्यम से उन से काम निकलवाना चाहिए, अनुपालन करने वाले कार्यान्वयनकर्ताओं के रूप में देखना चाहिए जिनका काम है कि उन्हें दिए गए निर्देशों के अनुसार पढ़ाएं, और समय-समय पर उन्हें उनके दोष जताए जाएं।

यह शिक्षकों के बारे में कम, और एक समाज और व्यवस्था की तरह हमारे बारे में अधिक बताता है। यह भी बताता है कि असली सुधार तब तक नहीं होगा जब तक कि हम शिक्षकों के बारे में हमारी धारणाएं न बदलें – कि वे क्षमताएं लाते हैं जिन्हें हम उनके साथ साझेदारी में बढ़ा सकते हैं और जब वे अपने कक्षा के लिए निर्णय लेने के लिए स्वायत्त होंगे तब विद्यार्थी भी बेहतर सीखेंगे।



मेरे भी बेचैन मन ने कुछ लिखा, जिसे यहां अपने निजी ब्लॉग पर चेंप दे रहा हूं, ताकि सनद रहे। 


पिछले 30 सालों से यह रोग बहुत अधिक बढ़ा है, शिक्षा में व्यय धन के बदले क्या मिल रहा? यह सोच इस दृष्टिकोण को उत्पन्न कर रही है। यह दृष्टिकोण यह पूर्वाग्रह कई समस्याएं पैदा करता है। सबसे पहले, यह शिक्षकों को उनके काम में स्वायत्तता और रचनात्मकता की कमी देता है।


जब हर समय शिक्षकों को यह बताया जाता है कि उन्हें क्या पढ़ाना है, कैसे पढ़ाना है, और क्या मापना है, तो वे अपने छात्रों के लिए सबसे अच्छा क्या है, इस पर निर्णय लेने की स्वयं की क्षमता खो देते हैं। 


दूसरे, यह दृष्टिकोण छात्रों को नुकसान पहुंचाता है। जब शिक्षकों को केवल एक निश्चित उत्पाद बनाने के लिए प्रेरित किया जाता है, तो वे अक्सर छात्रों की व्यक्तिगत जरूरतों और रुचियों को नजरअंदाज कर देते हैं। यह छात्रों के लिए सीखने के लिए एक प्रेरक और उत्पादक अनुभव नहीं बनाता है।


✍️ अंत में, यह दृष्टिकोण देश के भविष्य के लिए हानिकारक है। जब हम शिक्षकों की क्षमताओं को सीमित करते हैं, तो हम उन बच्चों के विकास में बाधा डालते हैं जो वे पढ़ाते हैं। इससे एक ऐसा समाज बनता है जो रचनात्मक, नवाचारी और समाधान-उन्मुख लोगों की कमी से पहले से ही पीड़ित है।


असली सुधार तब तक नहीं होगा जब तक कि हम शिक्षकों के बारे में हमारी धारणाएं, अपने पूर्वाग्रह न बदलें। हमें यह समझना होगा कि शिक्षक क्षमताएं लाते हैं जिन्हें हम उनके साथ साझेदारी में बढ़ा सकते हैं। हमें यह समझना होगा कि जब शिक्षक अपने कक्षा के लिए निर्णय लेने के लिए स्वायत्त होंगे तब विद्यार्थी भी बेहतर सीखेंगे।


✍️ प्रवीण त्रिवेदी

👉 मेरी फेसबुक पोस्ट पर यह टिप्पणी देख सकते हैं।


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