अध्यापको को राज्य पुरस्कार व राष्ट्रीय पुरूस्कार

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वर्ष 1950 से भारत सरकार द्वारा अध्यापकों को ‍विशिष्ट सेवा हेतु राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान करने की योजना प्रारम्भ हुई। इस योजनान्तर्गत प्रतिवर्ष प्रदेश मे चुने हुए प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों के अध्यापकों को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्क़त एवं सम्मानित किया जाता है। वर्ष 1985 से प्रदेश स्तर पर ऐसे शिक्षकों का राज्य पुरस्‍कार प्रदान करना आरम्भ किया गया। इस योजना के अन्तर्गत चुने हुए अध्यापकों को 2000.00 रूपये नगद, एक ऊनी शाल, मेडल और प्रमाण पत्र दिया जाता है। इसके अतिरिक्त अध्यापकों को दो वर्ष की सेवा विस्तारण तथा एक अग्रिम वेतन वृद्धि दिये जाने का भी प्राविधान है।

शासनादेश संख्या मा० 81/15-11-2004-1499(52) /2004 दिनांक 08 जुलाई 2004 द्वारा राज्य पुरस्कार प्राप्त अध्यापकों/अध्यापिकाओं को वर्तमान में दी जाने वाली धनराशि रू० 2000/- (रू० दो हजार मात्र) की धनराशि को बढ़ाकर रू० 10000।- (दस हजार मात्र) किये जाने की स्वीकृति प्रदान की गई जो वित्तीय वर्ष 2004-05 से प्रभावी है।

शासनादेश संख्या 886/15-11-2005-5(7)/2004 दिनांक 23.09.2005 द्वारा राष्ट्रीय/राज्य अध्यापक पुरस्कार प्राप्त अध्यापकों को राज्य परिवहन निगम की बसों मे प्रतिवर्ष् 1000 कि०मी० तक की निशुल्क यात्रा सुविधा प्रदान की गई है।

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  1. पुरस्कारों की योजना चलाने का उद्देश्य निश्चित रूप से अपने कर्तव्य के निर्वहन मेम उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले आदर्श शिक्षकों को प्रोत्साहित करना रहा होगा। लेकिन मैने इस पुरस्कृत सूची में ऐसे शिक्षक भी देखे हैं जिन्हें सालों कक्षा में जाकर पढ़ाने की फुर्सत ही नहीं मिलती।

    शिक्षकों के प्रति पूरी श्रद्धा और आदर के साथ यह खेदजनक तथ्य उल्लिखित करना चाहता हूँ कि पुरस्कार देने की यह एक ऐसी योजना है जिसमें इच्छुक व्यक्ति बाकायदा आवेदन पत्र भरकर सरकारी अधिकारियों की संस्तुति के लिए भाग-दौड़ करता है, अपने गुणों के बारे में सबूत इकठ्ठा करके ऊपर तक पहुँचाता है। यह सब देखकर ऐसा लगता है कि इस योजना में चयन की पद्धति को सुधारने की आवश्यकता है।

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