.......... कोशिश की जानी चाहिए कि अधिकतम बच्चे अपनी चुप्पी तोडें

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"बातचीत" को बच्चों को सीखने और सिखाने का प्रमुख  साधन बनाने के लिए अब तक पिछली तीन पोस्ट में चर्चा यहाँ(1), यहाँ(2) और यहाँ(3) की जा चुकी है|



आज की अंतिम कड़ी में चर्चा-क्रम को आगे बढाते हुए .......... अब सबसे बड़ा सवाल आता है कि हमारी आदर्श कक्षा व्यवस्था कैसी हो? वर्तमान शिक्षा प्रणाली में छात्र-अध्यापक अनुपात की विकराल समस्या को देखते हुए यह विषय और अधिक प्रासंगिक हो जाता हैहम सब अगर विचार करें तो एक आदर्श कक्षा व्यवस्था को कुछ इस तरह से निर्मित किया जा सकता है
  • कक्षा का स्वरूप एक सामुदाय अथवा समाज के समान हो, जिसमें छात्र/छात्रा भी शिक्षक के साथ सक्रिय सहभागी हों।
  • बच्चों और शिक्षकों के बीच एक आपसी विश्वास और सम्मान का रिश्ता हर स्थिति में बरकरार रहना चाहिए।
  • कक्षा के सभी कार्यों में छात्र/छात्राओं की सहमति तथा सहयोग , प्रोत्साहन के आधार पर हो|
  • सभी बालक और बालिकायें अपने आप को सक्रिय तथा महत्वपूर्ण सदस्य समझे इसके लिए प्रोत्साहन के आधार पर कुछ न कुछ जिम्मेदारियां बच्चों को भी दी जानी चाहिए।
  • इसके लिए सभी बालक और बालिकायें अध्यापक के साथ मिलकर ऐसी कक्षा व्यवस्था का निर्माण करें जिसमे परिवर्तन की पूरी गुंजाईश हो

अब आते हैं कक्षा की व्यवस्था से आगे बढ़ते हुए, विद्यालय में उस माहौल के बनाने की जिसमे बच्चे रुचिपूर्वक पढ़ सकेंउपर्युक्त समस्त बिन्दुओं को दृष्टिगत रखते हुए कुछ बिन्दु अति आवश्यक हैं। जिससे विद्यालय एवं कक्षा का माहौल उपयुक्त बन सके। जैसे -
हमारी कक्षा और हमारा विद्यालय एक परिवार या एक सीखने-सीखाने वालों का समुदाय बने और उसमें एक ऐसा भौतिक और भावनात्मक माहौल बनाएं जिससे कक्षा के सभी सदस्यों (जैसे- अध्यापक, बालक और बालिकाएं) को महसूस हो कि उनका प्रेम तथा सम्मान के साथ स्वागत हो रहा है। यह स्वागत का वातावरण अध्यापक के नेतृत्व तथा पहल से तो बनेगा, परन्तु वह पूर्ण रूप से सफल तब होगा, जब इसे बनाने में बच्चों की भी सक्रिय संपूर्ण हभागिता होगी। कक्षा का ढांचा प्रजातांत्रिक हो जिसमें सभी सदस्य अपने आप को स्वतन्त्र, जिम्मेदार और बराबर पायें। सभी को अपनत्व महसूस हो और लगे कि यह कक्षा उनकी अपनी है। अध्यापक को लगे कि यह बच्चे उनके अपने हैं और बच्चों को भी महसूस हो कि अध्यापक उनके अपने हैं और सभी को लगे कि विद्यालय उनका अपना है, जैसा कि उनका अपना घर। कक्षा में आपसी सम्मान, प्रेम तथा विश्वास के रिश्तों का एक सूक्ष्म जाल हो जिसमें कक्षा के सभी सदस्य खुशी से सीखें और सीखायें।

अब आता है की यह सब किस तरह की कक्षा की बैठक व्यवस्था में नवीनीकरण करके किया जा सकता है कक्षा की बैठक व्यवस्था में अध्यापक की उचित स्थिति भी बड़ा महत्व रखती है। अत: कक्षा में बैठक व्यवस्था निम्न प्रकार से भी की जा सकती है .....या इससे कुछ इतर भी -
  • कक्षा में बैठक व्यवस्था ऐसी हो कि जिससे अध्यापक/अध्यापिकाओं एवं छात्र/छात्राओं के बीच विभेदीकरण नहीं किया जा सकें और सभी आपस में बराबरी महसूस करें ।
  • बैठक व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिसमें सभी बच्चें अध्यापक/अध्यापिका को देख सकें तथा अध्यापक भी प्रत्येक छात्र/छात्रा को देख सके।
  • बैठक व्यवस्था बदलती रहनी चाहिए ताकि सभी बालक बालिकाओं को दोस्ती करने का अवसर मिले और अध्यापक के पास बैठने का अवसर प्राप्त हो।
  • बच्चों को सीधी पंक्ति में न बैठाकर अध्यापक बच्चों को भी अर्ध-गोलों या पूर्ण गोलों में बैठा सकते है और स्वयं भी उनके साथ बैठ सकते हैं|

उचित बैठक व्यवस्था से निम्न प्रभाव पड़ते हैं अतः यह परम आवश्यक है कि हम इसके बारे में अधिकतम ध्यान दें -
  • परस्पर बालकों/बालिकाओं के बीच झिझक दूर होती है।
  • अध्यापक/अध्यापिका के प्रति भय दूर होता है।
  • आपसी रिश्ता कायम होता है।(बच्चों का बच्चों के प्रति तथा अध्यापक का बच्चों के प्रति)
  • आपस में दूरियां समाप्त होती हैं।(बच्चों से बच्चों की तथा बच्चों से अध्यापकों की )
  • सामुदायिकता का अनुभव होता है।
  • प्रत्येक बच्चे को अपना अहम् स्थान एवं अपना महत्व भी महसूस होता है।
 

कक्षा में बात-चीत का माहौल बनाना भी इस प्रयास का एक बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा है| बच्चों को स्व-अधिगम प्राप्त करने के लिए सरकारी स्कूलों में विशेष रूप से यह आवश्यक है कि बच्चे अपनी राय व्यक्त करें, यह किस प्रकार किया जा सकता है ....इसकी चर्चा हम पिछली तीन पोस्ट्स( 1 , 2 , और 3 ) में हम कर चुके हैं|

इस तरह  बात-चीत करने से बच्चों में निम्न क्षमताओं का विकास होता है :
  • बात समझ कर जवाब देना।
  • अपनी रूचि पर भी ध्यान देना तथा रूचि के तहत अपने आपके महत्व को समझाना।
  • आत्मविश्वास एवं आत्म छवि के प्रति सजग होते हैं।
  • झिझक दूर होती है।
  • बालने की क्षमता का विकास होता है।

ध्यान रहना चाहिए कि बात-चीत के दौरान बालिकाओं को विशिष्ट महत्व देते रहना चाहिए, अन्यथा वे घर की प्राचीन परम्परा के तहत बोलने की मनाही को पूर्णतया आत्मसात् करती रहेंगी और उनकी स्व-अभिव्यक्ति क्षीण होती जाएगी तथा वे कक्षा में अपनी सदस्यता भी महसूस नहीं कर पाएगी इसलिए कोशिश की जानी चाहिए कि अधिकतम बच्चे अपनी चुप्पी तोडें


(समाप्त)

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16Comments
  1. मास्साब,तरकीबें तो खूब बताई आपने और लम्बी चर्चा भी सुखद रही पर जहाँ शिक्षक-शिक्षार्थी अनुपात ज्यादा है वहां किस तरह अनुशासन बचेगा?यहाँ तक कि कक्षाओं में ८०-१०० बच्चे होते हैं ऐसे में न कोई सुनने को तैयार होता है न सुनाने को.आपकी दवाई आदर्श कक्षा (३५-४० छात्र)के लिए ज्यादा मुफ़ीद है !

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  2. सार्थक एवं विचारणीय.

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  3. एक बात ऐसे ही ध्यान में आई है। बच्चे मुखर रहेंगे तो बाल यौन शोषण पर भी अंकुश लगेगा।

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  4. बिल्कुल सही बात .... बच्चों से संवाद बनेगा तो कई समस्याएँ हल होंगी .....
    उदहारण के तौर पर गिरिजेश जी की बात से सहमत हूँ.....

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  5. सार्थक संवाद बहुत जरुरी है...विचारोत्तेजक पोस्ट.


    __________________________
    "शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...

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  6. सही कहा आपने, शिक्षा का उददेश्य बच्चों को संवाद के लिए प्रेरित करना भी होना चाहिए।

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  7. एक समय था बच्चों को बात नहीं करने दिया जाता था और silence is golden का पाठ पढ़ाया जाता था :)

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  8. भाई, आप बहुत सार्थक लिख रहे हैं, मैं आपको पढ़ रहा हूं. ये बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं.

    अभी कुछ ही समय पहले मैंने रेडियो पर किसी को यह कहानी कहते सुना जो मैं आपसे बांट रहा हूं:-

    एक बार, कछुए के बच्चे समुद्र के किनारे रेत में पैदा होने के बाद समुद्र की ओर जा रहे थे, ढेर के ढेर. चीलों की मौज़ हो गई थी. झपट्टे पर झपट्टे. एक एक चील, कई कई बच्चे अपने पंजे में दबाए लिये जा रही थी. वहीं एक छोटा सा लड़का भाग-भाग कर उन बच्चों को चीलों से बचा बचा कर उन्हें उठाता और समुद्र में फेंक देता.

    एक आदमी दूर बैठा उस बच्चे को बड़ी देर से देख रहा था. जब उससे नहीं रहा गया तो उसने बच्चे को कहा -"क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हो it shall not make any difference."

    बच्चे ने एक और कछुए का बच्चा उठाया, और उसे समुद्र में फेंक कर उस आदमी से बोला-"See ! This mas made difference to his life."

    मेरा तो बस यही आग्रह है कि हम आदमी न हो कर बच्चा बन जिएं, जहां भी संभव हो अपना कर्म करें ....बस्स.
    बूंद समुद्र अपने आप हो जाएगी. शुभकामनाएं, आप सफल हों.

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  9. @संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI ने कहा…
    जहाँ शिक्षक-शिक्षार्थी अनुपात ज्यादा है वहां किस तरह अनुशासन बचेगा?

    यह सच है की छात्र - अध्यापक अनुपात ज्यादा होने से कई प्रकार की दिक्कतें आती हैं ...जिनका कोई सम्पूर्ण हल नहीं हो सकता है ....किन्तु मेरा व्यक्तिगत विचार है कि इन विषम परिस्थितिओं में तो बातचीत जैसी संभावनाओं और साधनों पर और जोर दिया जाना चाहिए !

    ...आपको बताना चाहता हूँ कि मेरे विद्यालय में कुल तीन कक्षाओं में 184 छात्र हैं ...और अध्यापक मात्र 2 (मुझे मिला करा ....)

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  10. @गिरिजेश राव ने कहा…
    एक बात ऐसे ही ध्यान में आई है। बच्चे मुखर रहेंगे तो बाल यौन शोषण पर भी अंकुश लगेगा।

    शब्दशः सहमत !
    नियमन युक्त बातचीत से ऐसी अन्य संभावनाओं का भी रास्ता खुलता है !

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  11. cmpershad ने कहा…


    समय समय की बात है .....और (शायद नहीं!) निश्चित रूप से हम सबको समय के अनुसार ढालने की कोशिश करते रहना चाहिए .....अपने शाश्वत मूल्यों को चोट पहुंचाए बगैर !

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  12. काजल कुमार Kajal Kumar ने कहा…
    बस यही आग्रह है कि हम आदमी न हो कर बच्चा बन जिएं, जहां भी संभव हो अपना कर्म करें ....बस|

    केवल इतना ही !
    ......The purpose of life is not to be happy - but to matter, to be productive, to be useful, to have it make some difference that you have lived at all. ~Leo Rosten

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  13. बच्चों का मुखर होना बहुत जरूरी है.... और एक स्वस्थ संवाद की आवशयकता सरोपरी है...जो बच्चा सबसे अधिक चुप हो...उसे कक्षा की गतिविधियों में सबसे पहले शामिल करने का प्रयास होना चाहिए.
    एक सार्थक आलेख.

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  14. बच्चों को बोलने देंगे तो ही पता लगेगा कि आप के बारे में उनकी क्या राय है।

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  15. बिल्कुल सही बात...........सार्थक संवाद बहुत जरुरी है..

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