गाँधी जी : एक पुनर्विचार !!!

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ज्ञान दत्त जी को शब्दों का टोटा चाहे जितना हुआ हो .... पर उनके मन की हलचल में एक बड़ा यक्ष प्रश्न गूंजा यह हलचल उनके मन में दबी हुई थी या विष्णुकांत शास्त्री की पुस्तक पढने के बाद उत्पन्न हुई , कहना मुश्किल है आज उसी कड़ी में (चूंकि इस चर्चा ने काफी हद तक मुझे अपने दबे हुए या दबाये हुए प्रश्नों का जवाब मिलने की आशंका पैदा कर दी है .....अतः इस चर्चा की शुरुवात पूरी तरह थोक कट-पेस्टीय तरीके से कर रहा हूँ )

"कल कुछ विष्णुकान्त शास्त्री जी की चुनी हुई रचनायें में से पढ़ा और उस पर मेरी अपनी कलम खास लिख नहीं सकी – शायद सोच लुंज-पुंज है। अन्तिम मत बना नहीं पाया हूं। पर विषय उथल-पुथल पैदा करने वाला प्रतीत होता है।"- ज्ञान दत्त


ज्ञान जी तो अन्तिम मन नहीं बना पाये तो उन्होंने अपनी हलचल को ब्लॉग पर परोस दिया ........ और इतनी टीपों के बाद , उनके मन में क्या निष्कर्ष आया ? यह भी शायद ज्ञान जी बताएं जरा विस्तार में ?

पहला अंश -
खिलाफत के मित्रों ने जब अफगानिस्तान के अमीर को आमंत्रित करने की योजना बनाई कि अफगानिस्तान का अमीर यहां आ कर हिन्दुस्तान पर शासन करे तो महात्मा गांधी ने उसका भी समर्थन किया।

दूसरा अंश -
मंच पर वन्देमातरम का गान हुआ। मौलाना मुहम्मद अली उठकर चले गये। “वन्देमातरम मुस्लिम विरोधी है, इस लिये मैं वन्देमातरम बोलने में शामिल नहीं होऊगा।” यह उस मौलाना मुहम्मद अली ने कहा जिसको महात्मा गांधी ने कांग्रेस का राष्ट्रपति बनाया। उसी मौलाना मुहम्मद अली ने कहा कि नीच से नीच, पतित से पतित मुसलमान महात्मा गांधी से मेरे लिये श्रेष्ठ है।

तीसरा अंश -
जो मुस्लिम नेतृत्व अपेक्षाकृत राष्ट्रीय था, अपेक्षाकृत आधुनिक था, उसकी महात्मा गांधी ने उपेक्षा की। आम लोगों को यह मालूम होना चाहिये कि बैरिस्टर जिन्ना एक समय के बहुत बड़े राष्ट्रवादी मुसलमान थे। वे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के सहयोगी थे और उन्होंने खिलाफत आन्दोलन का विरोध किया था परन्तु मौलाना मुहम्मद अली, शौकत अली जैसे कट्टर, बिल्कुल दकियानूसी नेताओं को महात्मा गांधी के द्वारा ऊपर खड़ा कर दिया गया एवं जिन्ना को और ऐसे ही दूसरे नेताओं को पीछे कर दिया गया।

अंत में ब्लॉग जगत का जाना माना डिस्क्लेमर भी ज्ञान जी को लगाना पड़ा -
बापू मेरे लिये महान हैं और देवतुल्य। और कोई छोटे-मोटे देवता नहीं, ईश्वरीय। पर हिंदू धर्म में यही बड़ाई है कि आप देवता को भी प्रश्न कर सकते हैं। ईश्वर के प्रति भी शंका रख कर ईश्वर को बेहतर उद्घाटित कर सकते हैं।आगे की पोस्ट में भी उन्होंने फ़िर से दोहराया कि महात्मा गांधी जी के व्यवहार को लेकर हम जैसे सामान्य बुद्धि के मन में कई सवाल आते हैं। और गांधी जी ही क्यों, अन्य महान लोगों के बारे में भी आते हैं। राम जी ने गर्भवती सीता माता के साथ गलत व्यवहार क्यों किया ? एकलव्य का अंगूठा क्यों कटवाया द्रोण ने? कर्ण और भीष्म का छल से वध क्यों कराया कृष्ण ने ? धर्मराज थे युधिष्ठिर; फिर ’नरो वा कुंजरो वा’ छाप काम क्यों किया? सब सवाल हैं। जेनुइन। ये कारपेट के नीचे नहीं ठेले जाते। इनके बारे में नेट पर लिखने का मतलब लोगों की सोच टटोलना है। किसी महान की अवमानना नहीं। पिछली पोस्ट को उसी कोण से लिया जाये! संघी/गांधीवादी/इस वादी/उस वादी कोण से नहीं। मेरी उदात्त हिन्दू सोच तो यही कहती है। केनोपनिषद प्रश्न करना सिखाता है। कि नहीं?

आई हुई टिप्पणियों में सतीश पंचम - जी ने कहा
गाँधी जी को मैंने उतना ही जाना है जितना कि सत्यनारायण की कथा सुनने वालों ने सत्यनारायण की कथा को जाना है। मैं आज तक इस सत्यनारायण की कथा को समझ ही नहीं पाया हूँ। शायद गाँधीजी को जानना भी एक सत्यनारायणी कथा ही हो। पर इस कथा में हाड माँस का एक जीवित पात्र भी है जो कुछ नहीं तो कम से कम अपने दौर में सुदूर देहात तक में एक हलचल पैदा कर सका था। गाँधी बाबा और सत्यनारायण की कथा में मैं गाँधी बाबा को श्रेष्ठ मानूँगा।

dhiru singh {धीरू सिंह} ने कहा -हिन्दुस्तान मे महात्मा गाँधी ही एक ऐसे व्यक्तित्व है जिसे जिस रंग के चश्मे से देखे वैसे ही दिखेंगे ।शास्त्री जी का चश्मा भगवा प्रायोजित था इसलिए मुस्लिम तुष्टिकरण ज्यादा दिखा और हरे चश्मे वाले उनके राम भजन से दुखी थे . बेचारे बापू प्राण गवाने के बाद भी घसीटे जाते है बेकार के विवाद मे . अगर उन्होंने भी जात धर्म प्रदेश की राजनीती की होती तो इस किताब की प्रतियाँ जलाई जाती ,दंगे होते ,ट्रेने जलाई जाती .लेकिन बापू तुम तो निरे महात्मा ही रहे

G Vishwanath ने कहा कि गाँधीजी महान थे।इसमें कोई संदेह नहीं।महापुरुष भी गलती करते हैं लेकिन जानबूझकर नहीं।

संजय बेंगाणी के अनुसार शास्त्रीजी ने जो कहा है वह एक ऐतिहासिक सच्चाई है. आँखे चुराने से क्या होगा? गाँधीजी महानतम नेता थे. मगर उनके प्रति अहोभाव क्यों? गाँधीजी से शुरू हुआ तुष्टिकरण आज और भी आगे निकल गया है. देश ने भुगता है, देश भुगतेगा. आपको (यहाँ हर एक को) कट्टरपंथी कहलवाने की परवाह किये बिना इसका विरोध करना चाहिए। देश से बड़ा कोई नहीं.यहाँ शास्त्रीजी को चश्मा लगा बता कर गाँधीजी की भूल से नजरे फेरने की कोशिश की है। तो क्या जिस चश्मे को पहनने की बात की है वह चश्मा पहने कोई व्यक्ति जिन्ना की प्रशंसा कर सकता है?

रंजना जी के अनुसार निश्चित रूप से गांधीजी महान व्यक्तित्व थे,परन्तु उनके कुछ कार्य व्यवहार ऐसे अवश्य थे जिन्हें किसी कीमत पर सही नही कहा जा सकता.क्योंकि उनके दूरगामी प्रभाव ऐसे निकले जिसने आज भी दो देशों को अस्थिर किया हुआ है और आज हम इस त्रासदी को झेलने को विवश हैं...बहुत से लोग विष्णुकांत जी को हिंदूवादी/संघवादी मान उनकी बातों को खारिज कर सकते हैं,पर इससे इनकार नही किया जा सकता की यदि उन्होंने नेहरू मोह छोड़ दिया होता तो आज हिन्दुस्तान पकिस्तान अलग होते और यूँ दोनों में हरवक्त ठनी होती. आख़िर क्या फर्क पड़ जाता अगर जिन्ना को ही प्रधान मंत्री बना दिया जाता. वस्तुतः मोतीलाल नेहरू के आर्थिक सहयोग का प्रतिदान (जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री बनाकर )चुकाने की तीव्र लालसा ने गांधीजी को देशहित के लिए सोचने नही दिया।

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said... सोचता हूँ की एक छोटे से (या, ह्त्या करके ज़बरदस्ती छोटा कर दिए गए) जीवन में इतनी सारी गलतियां इतनी सारी गलतियाँ कर पाने के लिए गांधी जी को कितना सकारात्मक काम करना पडा होगा? आज जो लोग भूत की सारी गलतियां उनके सर मढ़ देना चाहते हैं उन्हें यह तो मानना ही पडेगा कि, "गिरते हैं शहसवार ही मैदाने जंग में, वो सिफत क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल चलें."अफ़सोस, इतने बड़े देश में इक वही शहसवार निकला.

ताऊ रामपुरिया के अनुसार अब शाश्त्री जी आर.एस.एस से हैं तो बात चश्मे की तो उठेगी ही. फ़िर भी मैं समझता हुं कि अभी ये आरोप प्रत्यारोप लगते ही रहेंगे. गांधी जी को गुजरे अभी ज्यादा समय नही हुआ है.अभी हम उनको जिस चश्मे से देखना चाहते हैं यानि कि उनमे कोई भी मानवीय कमजोरियां ना हो, और वो एक सम्पुर्ण अवतारी पुरूष हों, तो यह अभी सम्भव नही है.हो सकता है काफ़ी समय बाद ऐसा हो.फ़िलहाल तो यही कम नही है कि हम गांधी जी को इस रुप के समतुल्य आंकने की कोशिश तो करते हैं? यानि हम अपेक्षा तो करते हैं.

विष्णु बैरागी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गांधी पर अधिकारपूर्वक कहने की स्थिति में, देश में गिनती के लोग होंगे। सामान्यत: जो भी कहा जाता है वह अत्यल् अध्ययन के आधार पर ही कहा जाता है। गांधी की आत् कथा, महादेव भाई की डायरी और गांधी वांगमय पूरा पढे बिना गांधी पर कोई अन्तिम टिप्पणी करना सम्भवत: जल्दबाजी होगी और इतना सब कुछ पढने का समय और धैर्य अब किसी के पास नहीं रह गया है। ऐसे में गांधी 'अन्धों का हाथी' बना दिए गए हैं। विष्णुकान्तजी शास्त्री की विद्वत्ता पर किसी को सन्देह नहीं होना चाहिए किन्तु उनकी राजनीतिक प्रतिबध्दता उनकी निरपेक्षता को संदिग् तो बनाती ही है।ऐसे में यही अच्छा होगा कि हममें से प्रत्येक, गांधी को अपनी इच्छा और सुविधानुसार समझने और तदनुसार ही भाष् करने के लिए स्वतन्त्र है।किन्तु कम से कम दो बातों से इंकार कर पाना शायद ही किसी के लिए सम्भव हो। पहली - आप गांधी से असहमत हो सकते हैं किन्तु उपेक्षा नहीं कर सकते। और दूसरी, तमाम व्याख्याओं और भाष् के बाद भी गांधी केवल सर्वकालिक हैं अपितु आज भी प्रांसगिक भी हैं और आवश्यक भी।

निशांक ने अपनी बात खरी खरी के रूप में प्रस्तुत की कि सिर्फ़ भारत में ही ऐसा है कि यदि कोई बड़ा व्यक्तित्व है तो उसे मर्यादा पुरषोत्तम बनना ही पड़ेगा! उसमें कोई कमी नही हो सकती!अगर गाँधी जी जीवित होते तो शायद स्वयं बता देते कि तुष्टिकरण किया| अपने जीवन के विवादास्पद पन्नो को भी उजागर कर देते| यदि ऐसा होता, तो क्या हम उन्हें उतना ही सम्मान देते? गाँधी जी पर मेरी कोई विशेषज्ञता नही, लेकिन ऐसा प्रतीत होता उन्होंने स्वयं कभी कुछ छुपाया नही [हाल में उठे सारे प्रश्नों का उत्तर स्वयं गाँधी जी के लेखों या उस समय के लिखे लेखों से मिल जाता है, ये तो उनके आस पास के लोगों ने ही उन्हें महात्मा बनाया और बनाये रहने का बीडा उठा लिया|

pallavi trivedi ने अपने विचरों को प्रस्तुत करते हुए कहा कि दरअसल एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के इतने पहलू होते हैं की ठीक तरह से उन्हें जान पाना और उनकी व्याख्या कर पाना संभव नहीं है ....फिर गांधी जी तो ऐसे इंसान हैं जिनके बारे में हर कोई जानना चाहता है और अलग अलग किताबों में पढ़कर अलग अलग लोगो की नज़र से गांधी को समझने की कोशिश में मतभेद उत्पन्न हो जाते हैं.....आज गांधी नहीं हैं तो क्यों उनके वे कार्य जिनकी हम प्रशंसा करते हैं ,उन्हें सराहें ! बाकी बातें जो गलत हैं ,या हमारी द्रष्टि में उचित नहीं हैं उन पर अब बहस करने से क्या होगा? गांधी जी अब हैं नहीं जो उन्हें सुधार सके! आखिर वे भी एक इंसान ही थे और हम सब की तरह उनमे भी गलतियां और बुराइयां थीं! तमाम गलतियों के बाद भी उनकी अच्छाइयों को कभी नहीं नकारा जा सकता ये अटल सत्य है।

इन सब को पढने के बाद एक अपना निष्कर्ष देने के साथ अपनी बात ख़त्म कर रहा हूँ

  • प्रश्न और जिज्ञासा स्वाभविक हैं , अतः विवेचना शालीन और तार्किक तरीके से करने में कोई हर्ज नहीं
  • गाँधी ने जिस धरातल पर उतर कर जो कार्य किए ...वह हर आम आदमी के बस की बात नहीं
  • गाँधी जी ने हर मुद्दे पर जिस साफगोई से अपने विचार , अपनी आत्मकथा आदि में अपने बारे में हर मुद्दे पर खुल कर अपनी आपबीती को रखा ...... वह हर व्यक्ति के बूते की बात नहीं
  • गाँधी जी आम आदमी थे , जिसने कुछ अलग हट कर बहुत आला दर्जे के काम किए ..... पर वह भगवान या दैवीय व्यक्ति नहीं थे
  • गलतियाँ हर व्यक्ति से होती हैं तो गाँधी जी से हुई हों यह मानना असलियत को मानने जैसा हो सकता है
  • यह सच है की यदि आज गांधी होते तो अपनी गलतियों को खुले र्रोप में बड़ी आसानी से स्वीकार कर लेते
  • यह जो लोग उनके नाम पर रोटी और सत्ता की मलाई चख रहे हैं ....के कारण ही अब तक गाँधी का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो सका
  • अब इतने खेमे बन गए हैं .... इसलिए सबको सहमत होने वाला निष्कर्ष निकलना अब सम्भव नहीं
  • विष्णु कान्त शास्त्री एक नेता से ज्याद विचारवान व्यक्ति थे ....जो आडम्बरों के ऊपर के व्यक्ति थे , उनकी बातों पर विचार कर नए निष्कर्ष निकालने की छूट इतिहास के विद्यार्थियों के साथ आम आदमी को हना चाहिए
  • पर आज के भारत में अब खेमों से ऊपर उठकर कोई सोच ही नहीं पा रहा है .......किसी के निष्कर्ष को दरकिनार करने का सबसे बढ़िया तरीका है कि वह फलां खेमे का हैं , उसने भगवा चश्मा लगा रखा हैं
  • एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के इतने पहलू होते हैं की ठीक तरह से उन्हें जान पाना और उनकी व्याख्या कर पाना संभव नहीं
  • और अंत में विष्णु वैरागी जी के शब्दों में -" आप गांधी से असहमत हो सकते हैं किन्उपेक्षा नहीं कर सकते। और दूसरी, तमाम व्याख्याओं और भाष्के बाद भी गांधी केवल सर्वकालिक हैं अपितु आज भी प्रांसगिक भी हैं और आवश्यक भी।"

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  1. कट-पेस्ट का काम आपने बेशक बहुत बढिया किया है, यह अलग बात है ख़ुद अपना कोई विचार देने से साफ़-साफ़ बच गए हैं. हालांकि आपकी मंशा भी ज़ाहिर हो गई है. बहरहाल मैं अपना मत देने का जोखिम उठा रहा हूँ और साफ़ तौर पर कह रहा हूँ कि अब (महात्मा?) गान्धी की चर्चा करना बिल्कुल वैसे ही है जैसे कब्र से गडा मुर्दा उखाडना और भी कोई सही-सलामत नहीं. ऐसा मुर्दा जिससे सिर्फ़ ऐसी बदबू आ रही है कि बर्दाश्त करना मुशकिल हो रहा है. आज से नहीं, जब वह ज़िन्दा (अगर कभी था तो) मनुष्य (?) था तो इससे ज़्यादा बदबू उसके कृत्यों से आ रही थी और उन कृत्यों का ज़िक्र कुछ हद तक तो आपने यहीं कर दिया है. मैं भगवा चश्मे से नहीं देख रहा हूँ. भगवा कैम्प में भी ऐसे ही कई महात्मा बैठे हैं, जैसे गान्धी जी थे. बहुत घटनाओं का जिक्र यहाँ मैं नहीं कर सकूंगा, पर हो सके तो यशपाल की दो किताबें 'गांधीवाद की शवपरीक्षा' और 'सिंहावलोकन'ज़रूर पढें. यह बात खयाल में रखिएगा कि यशपाल का भगवा ब्रिगेड दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था. इसके बावज़ूद मैं कुछ माम्लों में गन्धी को प्रासंगिक मानता हूँ. हालांकि उनके चेलों उन्हीं मसलों का ज़िक्र तक करना छोड दिया है. बल्कि बचते हैं कि कहीं दूसरे उनका जिक्र-उक्र न करने लगें. ग्राम स्वराज्य की उनकी अवधारणा पूरी तरह तो नहीं, पर बहुत हद तक प्रासंगिक है. पर आज गान्धी को बापू-बापू कह कर चिल्लाने और अपना उल्लू सीधा करने वाले घडियाली आंसू तो ख़ूब बहा रहे हैं, पर गांव को उन्होने ठेल कर हाशिए से भी बाहर कर दिया है. इसकी वजह भी कोई और नहीं, ख़ुद गान्धी ही थे. कैसे? वह सब बाद में कभी इकट्ठे लिखूंगा, क्योंकि यह छोटी च्रर्चा का मामला नहीं, लम्बी बहस का विषय है.

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  2. विषय बड़ा गंभीर है..शब्दों का टोटा है,
    व्यक्ति बहुत बड़ा है... टिप्पणी-बक्सा छोटा है
    सो, टिप्पणी संप्रति लम्बित है.. एक ओरिज़िनल पोस्ट लिखें ?

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  3. अब क्या कहें - अपने पिताजी से भी कई विषयों पर अलग राय होती है। कई विषयों में लगता है कि उन्होंने सही नहीं किया।
    पर उस सब से पिताजी का दर्जा कम तो नहीं हो जाता।

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  4. सबसे क्षमा सहित !!!!


    बड़े ही खेद के साथ कहना चाहता हूँ की आज विद्यालय से लौटकर मेल-बाक्स खोल कर पढने लगा तो फीडबर्नर से मेरी पोस्ट जिसकी अभी भूमिका ही बंधी थी .....वही पढने को मिली !!!



    सर चकराया तो पूरा मामला समझ में आया !!

    दर-असल कम्पूटर में एक वाइरस है , जो मेरे पोस्ट लिखने के दौरान हर बार पोस्ट प्रकाशन को सक्षम कर देता है ....कल भी ऐसा कई बार हुआ , और मैंने उसे झट से स्टाप करने की कोशिश की !!!

    लेकिन लगता है कि कल उसका दिन था .......... वह सफल हो गया !!
    जिस पोस्ट को मैं ड्राफ्ट में समझ रहा था , वह पोस्ट भी हो गई , और कम्मेंट्स भी आ गए ????



    माफ़ी ज्ञानदत्त जी ,माफ़ी डा.अमर कुमार जी ,माफ़ी इष्ट देव सांकृत्यायन जी !!!!

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  5. वही तो अपनी समझ में भी नही आ रहा था कि इस पोस्ट के मायने क्या हैं

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  6. Praveen Ji!
    Kabhi-kabhi yun hi kuchh chijon ka ho jana achha hi hota hai !!

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  7. ये मसला तो रास्ता भटक गया प्रतीत होता है।

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  8. अरे भाई, इस वायरस को उड़ा डालो. हम भी यही सोच रहे थे की आपके विचार कहाँ हैं इस पोस्ट में. कोई बात नहीं इस बहाने फ़िर से आ जायेंगे पढने के लिए.

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  9. ब्लांग के जरिये एतिहासिकता को परोसकर आपने खूबसूरत काम किया है । वैसे जिन्ना औऱ महात्मा गांधी के बीच तुलना बहुत ही अच्छी लगी । पढ़ने के बाद जानकारी के साथ-साथ एतिहासिकता का सुन्दर नमूना है लिखते रहिए । शु्क्रिया

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  10. मैं स्‍मार्ट इंडियन जी टिप्‍पणी से सहमत हूं।

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  11. इन सब को पढने के बाद एक अपना निष्कर्ष देने के साथ अपनी बात ख़त्म कर रहा हूँ ।

    * प्रश्न और जिज्ञासा स्वाभविक हैं , अतः विवेचना शालीन और तार्किक तरीके से करने में कोई हर्ज नहीं।
    * गाँधी ने जिस धरातल पर उतर कर जो कार्य किए ...वह हर आम आदमी के बस की बात नहीं।
    * गाँधी जी ने हर मुद्दे पर जिस साफगोई से अपने विचार , अपनी आत्मकथा आदि में अपने बारे में हर मुद्दे पर खुल कर अपनी आपबीती को रखा ...... वह हर व्यक्ति के बूते की बात नहीं ।
    * गाँधी जी आम आदमी थे , जिसने कुछ अलग हट कर बहुत आला दर्जे के काम किए ..... पर वह भगवान या दैवीय व्यक्ति नहीं थे ।
    * गलतियाँ हर व्यक्ति से होती हैं तो गाँधी जी से न हुई हों यह मानना असलियत को न मानने जैसा हो सकता है ।
    * यह सच है की यदि आज गांधी होते तो अपनी गलतियों को खुले र्रोप में बड़ी आसानी से स्वीकार कर लेते ।
    * यह जो लोग उनके नाम पर रोटी और सत्ता की मलाई चख रहे हैं ....के कारण ही अब तक गाँधी का वास्तविक मूल्यांकन नहीं हो सका ।
    * अब इतने खेमे बन गए हैं .... इसलिए सबको सहमत होने वाला निष्कर्ष निकलना अब सम्भव नहीं ।
    * विष्णु कान्त शास्त्री एक नेता से ज्याद विचारवान व्यक्ति थे ....जो आडम्बरों के ऊपर के व्यक्ति थे , उनकी बातों पर विचार कर नए निष्कर्ष निकालने की छूट इतिहास के विद्यार्थियों के साथ आम आदमी को हना चाहिए ।
    * पर आज के भारत में अब खेमों से ऊपर उठकर कोई सोच ही नहीं पा रहा है .......किसी के निष्कर्ष को दरकिनार करने का सबसे बढ़िया तरीका है कि वह फलां खेमे का हैं , उसने भगवा चश्मा लगा रखा हैं ।
    * एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के इतने पहलू होते हैं की ठीक तरह से उन्हें जान पाना और उनकी व्याख्या कर पाना संभव नहीं ।

    ----------> और अंत में विष्णु वैरागी जी के शब्दों में -"आप गांधी से असहमत हो सकते हैं किंतु उपेक्षा नहीं कर सकते। और दूसरी, तमाम व्‍याख्‍याओं और भाष्‍ के बाद भी गांधी न केवल सर्वकालिक हैं अपितु आज भी प्रांसगिक भी हैं और आवश्‍यक भी।"

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  12. bhai parveen ji ,gandhiji ke baare me kafi kuchh padaa ,mere vichaaron me gandhi ji koi dewta to the nahi wo bhi hamari tarh se saadharan maanv hi the .unhone desh ko aajaad karaane me jo bhi jitna bhi sahyog diyaa wah sarahniy hai or desh usi ke liye prtyek varsh naman bhi karta hai apne jiwan me unhone kyaa kyaa kiyaa,galtiyaa bhi ki hongi parntu unke dimang ki upaj thi jo shaayad us samy ki pristithiyon ke mutabik sahi hon is liye ab unko blame dena achchhi bat nahi hai -------

    aapne mere blog se apni najre inayat kyu alag kar lee krpyaa hame apne dil ke pas rakhiye kipyaa mere folower banne rahiye achchh lagega ---dhanyvaad

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